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Showing posts from 2022

तुम्हारा है

खेल रही यों ज़ुल्फोंसे, क्या इरादा तुम्हारा है  समझ रहा हूँ मैं सब, जो इशारा तुम्हारा है  मैं मान लूंगा सारी बातें, सोच कर कहना  अज़ाब है तुम पर, ख़सारा तुम्हारा है 

वहीँ हूँ मैं

आना हो जब, आ सकते हो, अब भी वहीँ हूँ मैं  दास्ताँ अपनी सुना सकते हो, अब भी वहीँ हूँ मैं  इक मुस्कान भर काफी है धड़कनें तेज़ करने को  जब चाहो ये सितम ढा सकते हो, अब भी वहीँ हूँ मैं  मुरझाये से शजर हो चले बिछड़े जबसे तुम औ हम  एक धक्केमे अब गिरा सकते हो, अब भी वहीँ हूँ मैं 

लिख देता

ग़म, आंसू, विरह, इंतज़ार, तमाम लिख देता  उठाकर क़लम मैं बस तेरा नाम लिख देता  तेरी हयाने बाँध रक्खे हैं हाथ मेरे वरना  तुझे मोहब्बत है मुझसे सरेआम लिख देता    बातें हैं बाकी बोहत अभी केहनेको तुझसे पता होता हाल-ए-दिल इक पयाम लिख देता  ना होता सब्र मुझको और यकीं वादे पे तेरे  बेवफाई का भी तुझपर इलज़ाम लिख देता  राज है तेरा अफवाह सुनी तो मैंने भी थी  गर मानता रुस्वाई तेरी गुमनाम लिख देता 

चर्चा तेरा

माना की इम्तेहान-ए-किताब-ए-मोहब्बतमें नाकाम रहा  पेहलुमे रहा जब तलक तेरे, दिलको ज़रा आराम रहा  दावे नहीं कोई कीये रूहानी चाहत, जन्नती प्रीतके मैंने  असासी इश्क़ था तुझसे, बस तुझसे ही मुझे काम रहा  अपने नामके साथ तेरा नाम जोड़ लिखता रहा बरसों मैं  छोड़ दिया चलन, तहरीरको फिर भी, याद तेरा नाम रहा तारीफ तेरी, जमाल तेरा, तौसीफ तेरा ही बखान हुआ   मेहफिलमे ग़ज़ल जब कही मैंने, चर्चा तेरा तमाम रहा  रूह महक गयी जब उँगलियोंसे तुझे छुआ इक रोज़  एहसास उस एक लम्सका ताउम्र, सुब्ह-ओ-शाम रहा  

તારી સાથે સંવાદ

હેય અને હાઈ માં સંકેલાઇ ગયા છીએ  તું ને હું માં આપણે વિખરાઈ ગયા છીએ  ઈરાદા ઘણા ને વાતો ઘણીય કરીયે ખરા  જીવન જંજાળમાં પણ ફસાઈ ગયા છીએ  વ્યસ્ત હોવું સારું, બસ ધ્યાન રાખજે એટલું  રહો ક્યાંય, મારા વિના લાગશે સદા એકલું  વર્ષો કદાચ વાતોય ના થાય શક્ય છે આપણી  ભાગ્યમાં એકમેકના તો લખાઈ ગયા છીએ 

कमीने दोस्त

सफरमे मिल गये दो अजनबी थे हम कभी  हुई बात-चीत फिर करीब आये, दोस्त बन गये  अलग थीं जबकी मंज़िलें, कुछ देर साथ चलते ही  हुआ ये इत्तेफ़ाक़ साथ ही में फिर निकल लिये  याद कर शैतानियां, शरारतें, मुसीबतें  मिलके ढाई थीं, क्या याद है वो आफतें  घंटों इन्तेज़ारमे ताकना वो रास्ते  शेर जो मैंने लीखे, तेरी वालीके वास्ते  वो मनघडंत कथाएं, झूठ-सच सभी कहानियां बढ़ा चढ़ाके करता था मेरी जो तू बड़ाइयाँ  ढेर सारा खिलखिलाना, रूठना, रोना कभी  मुश्किलोंके हल दिलाता साथमे होना कभी  इक नए पड़ाव पर आयी भले है ज़िन्दगी  शोहरत, सफलता और धन लायी भले है ज़िन्दगी  यार आज भी वोही दो चार अपने ख़ास हैं  दोस्त हैं कमीने लेकिन दिलके अपने पास हैं 

आइना चटक के

आइना चटक के टूट गया  यार मिला, फिर रूठ गया  केहनेको बातें बोहत थीं उनसे  देखनेमें केहना, सब छूट गया  दिल आबाद था यादोंसे जिसकी  आकर जागीर, सारी लूट गया  बड़े घरके बेटोंमें छिड़ा झगड़ा  कांचसा दिल, माँका फूट गया  मुसीबतके वक़्त गायब थे दोस्त  दावोंका उनके, पकड़ा झूट गया 

नग्मोंकी थाती

कुछ कवितायेँ, कुछ शेर, कुछ नग्मोंकी थाती है  दिलसे निकलकर कुछ बातें, गीतोंमें आती हैं  हमने कब मन्ज़िलको सोचकर किया सफर शुरू  चल पड़े जिस भी डगर, तुम तक ले आती है  इंसानियत है की खैरात भी एहतिरामसे दी जाये ज़रूरतें घुटनों पर बड़े बडोंको ले आती है  गुब्बारे मिलते ही खिलखिलाने लगे बच्चे फिर सस्तमे इतनी कीमती नेमत मिल जाती है दीवाली मिलने आये बेटे-बहू, पोते-पोतीके लीये  दुखते घुटने लिए माँ रसोइमे जुट जाती है उसकी गलीसे आज भी गुज़रता हूँ मैं जब  कनखियोंसे देखती है और मुस्कराती है सुबहसे शाम तक खड़े खड़े कमर दुखती तो है  रातको फिर भी साजनके वो पैर दबाती है  बोहत लड़ झगड़कर घरसे निकला था मैं कल  कलसे ही घरकी बोहत याद मुझे आती है बालूशाही खिलानेवालेके वहां स्वागतमे पानी-गुड़  तक़दीर कभी ऐसा भी वक़्त दिखाती है 

दीवालीकी बधाई

दीप जल रहे, नयी रौशनी लो छायी है  बाद एक साल ऋत उत्सवोंकी आयी है  ज़मानेभरकी हर ख़ुशी आ सामने बैठी मेरे  एक हसीन लड़की जब सँवरके मुस्कुरायी है  रंग कुछ बदल रहा फ़िज़ाका चारों ओर है  सुना रहा है गीत ये पटाखोंका जो शोर है  जल चुकी फुलझड़ियां, अनार, चकरी चल चुके  आँगनमे मेरे आके रंग रंगोलियोंमे ढल चुके  घर, गली, नगर, शहर, की हर डगर सजाई है  झपटके, माँजके सारी मैल भी हटाई है  सियाराम लौट आये तबसे हर बरस मनाई है  हमको, तुमको, सबको दीवालीकी बधाई है  गले मिले यारोंके हम मुद्दतोंके बाद हैं  दोहराई फिर सभीने भूली बिसरि याद हैं  पुराने चुटकुले और कुछ पुरानी गालियाँ  बेसुरे गीतों पर फिर जोरकी वो तालियॉँ  फिर पुराने खेल, खींच तान और लड़ाइयाँ  ढेरों हैं ठहाके, कुछ गीले भी और रुस्वाइयाँ  रखके हाथ कन्धोंपे तस्वीरोंका खींचना  भरके बाहोंमे एक दूसरेको भींचना  ये क्या लडकपना, कैसी बचकानी ये हरकतें  दोस्तोंसे मिल नयी शरारतोंमे शिरकतें  बाद कई सालोंके रात ऐसी आयी है  नये साल और दिवाली की मित्रों, बधाई...

आ मेरे यार मेरे ज़ख्म कुरेद दे

भर रहे हैं घाव मेरे वक़्तके इलाज से  टीस भी चली गयी अब तो तेरी याद्से  ग़म की कुछ कमी सी मेरी शायरीमे पड़ गयीं  ये गज़ब की अब निगाह औरोंसे भी लड़ गयीं  सांसें तेज़ होती ना, तेरी गलीके मोड़पर  ना आँख होती नम ये सोच तू गयी क्यों छोड़कर  जुड़ रहे हैं टुकड़े दिलके फिर से आके तोड़ दे  थाम मेरा हाथ और बेरुखीसे छोड़ दे  मेरी एक इल्तेजा मान ले ए जानेजां  लुत्फ़-ए-दर्द दे, ग़मे इश्क़ मुझपर फेर दे  आ मेरे यार मेरे ज़ख्म कुरेद दे 

In reply to megbook99

बस अभी अभी तो मिला हूँ फिरसे तलबगार हूँ मैं  पढ़ा तो थोड़ा ही है अब तलक  बेचैन हूँ, बेक़रार हूँ मैं  यूँ तो सुख़नवर हूँ, भरम है मुझे  आपका तो क़द्रदार हूँ मैं 

कोई मिले

लड़खड़ायें तो सहारा कोई मिले  मझधारमे किनारा कोई मिले  हम भी चैनसे सो लें इक बार गर संदेसा जो तुम्हारा कोई मिले  कहानियोंके किरदार बदल लेंगे  हम घर, शेहर, व्यापार बदल लेंगे  दो कमीज, एक पतलून, साथ हैं अपने  सब छोड़ चल पड़ें, इशारा कोई मिले  लगता है की रूठे हुए हैं आजकल  इतराये या ऐंठे हुए हैं आजकल  छेड़ें या चुम लें, बस मना लें उनको  मौका बातचीतका, दोबारा कोई मिले

श्राद्ध

समय, बोहत कुछ बहा ले गया  यौवन, दृढ़ता, साहस, स्थिरता  ले गया आशा भविष्यकी  शेष रेह गये भय अवं  भूतकाल  ये जो पौधे मुरझाये से हैं  हरे हुआ करते थे कभी  डालियाँ इनकी भी  वृत्ताकार फैलती थीं  झुकी रहतीं थीं सुन्दर फूलों  मीठे फलों से कभी  सावनमे उन फल-फूलों से निकलकर बीज नयी धरामे समा जाते  कभी तितलियों, कभी पंछियों के सहारे  प्रायः इन पौधोंसे दूर निकल जाते  फिर वहां खिलते नये पौधे,  फूल और फलोंसे लदे हुए  और उनसे जन्म लेते नये पेड़  ऐसे ही हरियाली फैली रहती जगमे  सोचिये यदि पेड़ होते स्वार्थी  अपने बीज दूर ना जाने देते तो कितने दिन चलता ये संसार? क्या संभव होता भिन्न रंगोका  होना एक ही जाती के फूलमे? कुम्हला जाती ना सृष्टि? क्या होते हम और तुम, या में  मैं  जो उत्पन्न हुआ हूँ  इन पौधोंसे जन्मे बच्चोंसे  मैं  और मेरी देह साक्षी है की  ये पौधे कभी खिलखिलाये थे  इन्होने जिया था एक सम्पूर्ण जीवन  आज भी जी रहे हैं वो मुझमे  तो जबतक मैं हूँ, वो भी हैं...

बहती नदिया

मेरे शहरमें वैसे तो कोई खास बात नहीं  कुछ बड़ी इमारतें हैं, बाकी शहरों जैसी ही  कई रास्ते हैं और उन पर चलते दौड़ते लोग  वही ग़म हैं और ख़ुशी, बाकी शहरों जैसे ही  अलग हैं तो बस तुम, इस बहती नदिया सी  और किनारे बैठ तुमको लिखता हुआ मैं 

रेहने दे

बोहत कुछ है केहने को मगर, खामोश रेहने दे  बात मान मेरे यार, ज़िद ना कर, खामोश रेहने दे  कल फिर उन्हें देख तमन्नाएँ गीत गाने लगीं  छेड़ ना दिल के तार यूँ, खामोश रेहने दे 

प्रतीक्षा

मेरी प्रतीक्षा को प्रतिफल दिलाये कोई  उसके घरका पता मुझे भी बताये कोई  कविताके ये फूल उन्हीं पर बरसाने हैं  किस गली है आना जाना, दिखाये कोई 

अजनबी

तेरी हर तस्वीर, हर रील को दसियों बार देख लिया  सब में वही खुले बाल, बड़ी बड़ी काजल लगी आँखें  और मुस्कुराता हुआ मासूम सा चेहरा  कुछ अनोखा नहीं है तुझमे, ना नाच ना ललचाती अदाएं  इंस्टाग्राम पर सैंकड़ों डोलती, लुभाती सुंदरियाँ दिखती हैं  मगर, ए अजनबी क्यूँ बार बार लौटता हूँ  तेरी प्रोफाइल पर  तेरी अवाजमे कहे हर शेरनी छू लिया दिलको मेरे  जलन होती है मुझे आईनेसे  जिसके सामने तुम बैठती हो  शायद, मुझे इश्क़ हो गया है तेरी शायरी से,  तेरी सादगी से, और तुझसे   क्या संभव है किसीसे बिना मिले प्रेम करना?  क्या ये इंतज़ार, ये तड़प, उसी प्रेम के लक्षण हैं?  बताना मुझे ए अजनबी, गर जान पाओ तो  क्यूंकि अब मेरे दिल ओ दिमाग पर तुम्हारे शब्द  तुम्हारा चेहरा छाया हुआ है हर समय  कोई नया शेर सूझता ही नहीं जो तेरे लिए ना हो  मेरी शायरी तुझमे समां गयी है शायद  तो इतनी बिनती मान लो,  मेरे हिस्सेके शेर भी तुम्हीं कह दो 

सावनकी दोपहर

अलसाई दोपहरोंमें सावनके बादलों को देख  एक कविता मनमें आकार लेने लगती है  जैसे हवाएं काले मेघ उड़ाकर मेरी छत पर ले आयीं  वैसे ही ये काव्य एक नाम लाकर जिह्वा पर छोड़ गया  नयन उठाये, हृदयमे आशा भरे, आकाश निहार रहा हूँ  लेखनी कागज़ पर टिकाये वैसे ही प्रतीक्षा में हूँ की  अब फटेंगे बादल भावनाओंके, अब बरसेंगे अभ्र अब ख़याल आकार लेंगे, अब शब्द बनेंगे शायरी  और प्यासी धरा तृप्त होगी बरखा के आने पर जैसे  मेरे उर में भी वैसा ही हर्ष व्याप्त होगा काव्य बन जानेपर  यकायक पवन तेज़ चल पड़े, बादल बिखर गए  अचला फिर इन्तेज़ारमे रह गयी, वर्षा नहीं आयी  कदाचित ये नज़्म भी अधूरी रेह जाएगी आज  और वो नाम जबान पर ठेहरेगा नहीं, दिलमे लौट जायेगा 

आइना

मेरी अपनी तस्वीरको भी पलट करके दिखाता है  झूठ कहा किसीने की आइना सब सच बताता है  मैं जैसा सोचूं मनमें ठीक वैसा ही देख लूँ खुदको  मेरे भरमके मुताबिक़ ही प्रतिबिंब बदल जाता है  उसकी एक मुस्कानने गायब कर दीं शिकन सारी  ज़रा सा मिजाज़ बदलते ही नए रंगमें ढल जाता है  कभी फुर्सत मिलती है तो उसको सँवरते देखता हूँ  ठहरता नहीं है कम्बख्त वहीँ, वक़्त निकल जाता है  दर्पणके सामने ही मेरे पास आ वो भी खड़े हो गये  देखता हूँ की ये मेरा अक्स भी उन पर मर जाता है  

वो केश अब संवारती नहीं

वो केश अब संवारती नहीं  बाँध लेती है जुड़ेमें जोरसे  पेहलेसी घटाएँ पसारती नहीं  वो केश अब संवारती नहीं  समय कम रहता है बोहत  उसके पास सजनेके लीये  वक़्त कभी बचता ही नहीं  किसी हसीन सपनेके लीये  बाहें बालमके गले उतारती नहीं  वो केश अब संवारती नहीं  तैयारी बच्चोंके स्कूल जानेकी  जूते चमकाने, टिफिन बनानेकी   घरके सब काम करनेके बाद  खाना खिलाने, होमवर्क करानेकी  ज़िम्मेदारी तो कोई नकारती नहीं  बस, वो केश अब संवारती नहीं  गीले बालोंसे ओस की बूंदें गिरा  कभी मुझको उठाया करती थी  या बिखरी काली ज़ुल्फ़ों तले  कभी मुझको सुलाया करती थी  सितम ऐसे कोई मुझपर गुजारती नहीं   वो केश अब संवारती नहीं 

छोड़ आया हूँ

लबों तक आ पहुंचा था वो समंदर छोड़ आया हूँ  दीवानगी प्यासकी थी ऐसी मैं सागर छोड़ आया हूँ  एक पेड़ने बरसों बचाये रक्खा था धूपसे मुझको  एक तलाशमे निकला हूँ, वो शजर छोड़ आया हूँ 

मेरी किताबें

मेरे शौख, मेरे ऐब, मेरी लत हैं ये  छुड़ाए नहीं छूटती वो आदत हैं ये  बड़ी जागीर कोई नहीं जुटाई मैंने  संजोई जीवनभर वो दौलत हैं ये  चाहते हो ढूंढना खुदको अगर तुम  पेहली और आखिरी ज़रूरत हैं ये  कई रंगके किरदार जीये मैंने इनमे  कभी हवस हैं कभी इबादत हैं ये  चंद पन्नोंमे संसार छुपाये रेहती हैं  मेरी सबसे अज़ीज़ विरासत हैं ये 

रहे हैं

दास्तान अपनी इन्हीं गीतोंमें गा रहे हैं  लिखे थे तुम्हारे लिए, जगको सुना रहे हैं  ग़ज़लका मोज़ू, शायरी की तम्हीद हो तुम  तुम्हारा है दर्द जो शायरी में लिखे जा रहे हैं ऐसा नहीं की मिलनेको बेकरारी है कम  तुम्हारे लिए ही रंग बालोंमे लगा रहे हैं  शाख़ पर अकेला जिन्हें छोड़ गए परिंदे  घोंसले अब वो मेरे सपनों में आ रहे हैं  किसी दिन तो गुमनामीके अँधेरे छंटेंगे  रोज़ाना नया कलाम लिखे जा रहे हैं  ये जो जब्त किये बैठे हो सारी रौशनी ख़बरदार की मंच पर अब हम आ रहे हैं  सुख़नवर हो तुम, भरम छोड़ दो राज  ये देखो फिर वो बिना पढ़े जा रहे हैं 

है मुझे

शायरी से है प्रेम, कवितासे मोहब्बत है मुझे  कुरेदना दिलके ज़ख्म रोज़, आदत है मुझे  अब कोई यार पेहले सा अज़ीज़ नहीं रहा  अपने लिए बोहत आजकल फुर्सत है मुझे  उसकी हर तस्वीरको बार बार देखता हूँ   ये क्या गज़ब नशा, अजीब लत है मुझे  दौलतें गिरीं पैरों पर, झुक कर उठा ना सके  इसी उसूलपरस्तीसे अब नफरत है मुझे   फिलवक्त अर्ज़ियाँ नामंज़ूर कर रहा लेकिन  सुन सब रहा है मेरा राम, अक़ीदत है मुझे 

तुम्हीं थे

मुंह मोड़ कर जानेवाले देखा मैंने, तुम्हीं थे  देख रहे थे बड़ी देरसे इधर देखा मैंने, तुम्हीं थे  घरकी दीवारमे चुनवा दिए, मुझपर चले जो कल  मुसलसल पत्थर चलानेवाले देखा मैंने, तुम्हीं थे

राम कहानेको

राम कहानेको कर्त्तव्य निभाना पड़ता है  कर्मोंसे खुदको भगवान बनाना पड़ता है  नहीं गूंजते रेहते हैं नाम यूँ ही सदियों तक  वक़्त पड़े तो पत्थर पानीपे तैराना पड़ता है  पर्वत उठा लेनेवाले खुद ही सेवक बन जाएँ  किरदारको ऐसा असरदार बनाना पड़ता है    हर युगमें भीषण संघर्ष उठाना पड़ता है  राम होनेके लिए वनवास जाना पड़ता है  पहाड़ चीर कर नदियां लाते होंगे लोग  प्यारमे सागर पर बाँध बनाना पड़ता है  यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, पर्याप्त नहीं  सीताका हो अपमान तो लंका जलाना पड़ता है  राम हो तो दुखियोंका साथ निभाना पड़ता है  खुद जाकर सुग्रीवको हाथ थमाना पड़ता है  कौन जाने किस समय कौन काम आ जाये  गीद्ध, निशाचर, वानरोंको साथ मिलाना पड़ता है  केवल मुकुट रखनेसे विभीषण राजा नहीं होता  संकल्प पुष्टिको युद्धमे रावण हराना पड़ता है

ना आया

होठों तक पहुंचा मगर प्यास ना बुझा पाया  वो जीवन क्या जो किसीके ना काम आया  आँखें भर आती है खिलखिलाहटें याद करके  वो रिश्ता क्या जो खुलके हंसा ना रुला पाया  उदासी बढ़ गयी और भी, फ़ोन जब लगा नहीं  वो याद ही क्या, रात भर जिसने ना तड़पाया  जाने क्यों केहते केहते रुक गया मुझसे यार  वो दोस्त क्या जो बेझिझक ग़म ना बाँट पाया  उसके नामके हर अक्षर को भुला दिया लेकिन  वो दीवाना चाहकर भी एक नाम ना भुला पाया उसके खत के पुर्जे किये, ख़ाकमें मिला दिया  वो पन्ना नाम उसका था जिसमे ना जला पाया यूँ तो बोहत देरसे नज़रें ताक रही थी उन्हें  वो मुड़े इस तरफ तो निगाहें ना मिला पाया  ये काले बादल फिर आज घेरके बैठे हैं आसमान  वो भी अपनी उम्मीदका दिया फिर ना बुझा पाया  एक ख्वाब खुली आंखोंमे आकर बस गया कभी  वो जागता ही रहा पलभरभी आँख ना लगा पाया 

अपने बड़ों के नाम

चरण छूकर एक प्रणाम कर रहा हूँ अपने बडोंका एहतराम कर रहा हूँ  दीया क्या दिखायेगा सूरजको रौशनी अपनी हस्तीसे बड़ा काम कर रहा हूँ गरुड़के सहारे गौरैया लाँघी हिमालय  खुदके लिए वही इंतेज़ाम कर रहा हूँ जो भी है हुनर, उनकी ही बरकत है ये कृतिभी उन्हींके नाम कर रहा हूँ  उपनिषदोंकी मानिंद पढ़ता रहा उन्हें आज भी वही मैं सकाम कर रहा हूँ 

रात भर

जश्न चलता रहा, जाम घुलते रहे, कहानी बनती रही रात भर  हम भी थे, यार भी थे, बातें भी, यूँ ही चलती रही रात भर  कोई मय के पयालोंमे खुद ही को खोजता रहा ताउम्र  हम खुदको तलाशते रहे शायरीमे रात भर 

यारों

सरमस्त हो गये थे उसने जो छू लिया इक रोज़ नशा वही तलाश, थोड़ा और, मिला लो यारों  सुरूर उसके हुस्नका अब तक हल्का नहीं हुआ  बेकार रखे ये जाम मेरे सामने, हटा लो यारों  नयी कलियोंके खिलनेकी मेहक आई दफ़अतन    फ़ुरसतसे किसी शाम हवेली पर, बुला लो यारों  शोहरत मिली ना दौलत, इश्क़में भी नाकाम रहा  रौशनीके तो काम आये, ये कलाम, जला लो यारों

फिर...

फिर किसी बातपे दिल भर आया है अभी  जैसे भुलासा कोई दर्द उभर आया है अभी  फिर अधूरा छूट गया किस्सा जो पसंद था  ज़ेहनमे क्यों तेरा ख़याल उतर आया है अभी  फिर ज़रा सी बात पर बात बंद हो चली है  नये कपडोंमे नया फोटो नज़र आया है अभी फिर एक अजनबी सफरमें मुस्कुराता मिला  जान पड़ताकी नया इस शहर आया है अभी फिर खूबसूरत उदास ऑंखें इन्तेज़ारमे थीं  झूठे वादे पर किसने ऐतबार दिलाया है अभी

रह गया

किसीको मंज़िलोंने आगे बढ़कर संभाला है, कोई उम्र भर उन्हें खोजता ही रह गया  किसीने झूठ बेच मेहल बना लिए हैं, कोई सच झोंपडिमे संजोता रह गया 

वही दे

शायरोंके दिलमे सुलगती ज्वाला भी वही दे  गुमनाम अन्धेरोंसे उबारे वो उजाला भी वही दे  तेरा वो राम जिसने जन्म दिया, कर्म दिया  दिया है पेट तो हर निवाला भी वही दे  ये नहीं के मयकशीसे किनारा कर लिया  पी लेंगे हँसके ज़हर जो प्याला भी वही दे 

लग गया था

सितम कई और भेजे मेरी तरफ उसने  यादोंमें उन्हें भी संजोने लग गया था  एक छुअन, इक बोसा, ज़ुल्फोंको संवारना  इश्क़ जैसा कुछ कुछ होने लग गया था  क्या ग़ज़ल थी, क्या बात कही थी साहब  चन्द शेर मैं भी पिरोने लग गया था 

उदास लड़के

उदास लड़के कहाँ मिलेंगे? मिलेंगे वो भीड़मे तनहा से  अजनबीयोंमे एक दोस्त खोजते  लाइब्रेरी के बाहरके गार्डन में  किताबोंके पन्ने पलटते हुए  क्लासकी बीच वाली बेंच पर  नोट्स लिखते कभी यूँ ही बैठे  किसी नज़र के मुस्कुरानेका  इंतज़ार करते हुए  जगजीतकी गज़लोंको सुनते  गूगल पर शेरके अर्थ खोजते  कविता पढ़ते, सुनते कुछ अपना  लिखने की कोशिश करते हुए  आगे बढ़कर सबके काम आते हुए  कभी कभी बेवजह मुस्कुराते हुए  उदास आंखोंमे झूठी हंसी लाते हुए  अनजान पोस्टपर कविता बनाते हुए  मिल जायेंगे उदास लड़के  अनदेखा कर देना उन्हें, मुंह ना लगाना  बोहत गहरे हैं, संभलना, डूब ना जाना 

देखते हैं

इब्तेदा ए ग़ज़ल होती है जब एक नज़र देखते हैं  मुक़म्मल हो जाती है उन्हें जब जी भर देखते हैं  वो आये, बैठे, कुछ बात की और चल दिए  मुन्तज़िर नक्शेकदम कभी रहगुज़र देखते हैं  चाँद से पेहले तेरा दीदार माँगा है अबकी  चलो हम भी दुओंका असर देखते हैं  तुमने लगायी जो तस्वीर किसी दीवारकी भी गर  गज़ब लत है की हम उसे भी अक्सर देखते हैं 

तबीयत मेरी

तबीयत मेरी भी अब पेहले सी रही कहाँ  हर वक़्त, हर किसीको मिल जाता नहीं  नीम के पत्तोंका ज़ायका भा गया शायद  बाज़ारू मीठे पकवान जल्द खाता नहीं  शुक्र भगवानका, संभाल लेता है मुश्किलमे  और ये भी के कभी एहसान जताता नहीं  दोस्त वो भी हैं, वक़्त के हिसाबसे मिलते हैं  बात करता तो हूँ पर अब बातमें आता नहीं  कुछ उम्र का लिहाज़, कुछ खौफ ज़मानेका  नयी कलियोंको देख पेहलेसा मुस्कुराता नहीं  नज़र से नज़र का मिलना इत्तेफ़ाक़ ही समझो   यूँ दिल हर किसीसे अब लगाता नहीं  एक दीदारको मीलों पैदल चला करते थे कभी  जबसे शहर छोड़ा है उसने, सैर पर जाता नहीं  सुबह सुबह उनकी तस्वीर देख लिया करता हूँ  नमाज़ छोड़ दी है मैंने, अब सजदे भी जाता नहीं

खुदसे ही बातें

खुदसे ही खूब बातें बना लेते हैं  तन्हाईमे दिल कुछ ऐसे लगा लेते हैं  घंटों उनके नाम को ताकते रहते हैं  शामें यूँ ही इन्तेज़ारमें बीता लेते हैं  एक तस्वीर उनकी पसंद आयी थी पिछले दिनों  बार बार नज़रें उस पर घुमा लेते हैं  और के होकर भी वो दोस्त तो हैं मेरे  समझाते हैं ऐसे और मन को मना लेते हैं  देख उनके हुस्न को बेहक तो जाते हैं मगर  ज़ज़्बातों पर बाँध अपने बना लेते हैं 

तेरे खत

गुलाबकी पंखुड़ियाँ बिखरतीं  जिनसे तेरे इत्रकी खुशबु मेहकतीं  हर्फ़ जो उंगलियोंसे सजाए  पैगाम जो सहेलियोंने पहुंचाए  नस्तालिकमें मेरे नाम के नीचे  आँसूओंके दस्तखत तुम्हारे  छुप छुप के देख लेता हूँ  ग़ज़ल केहनेसे पेहले 

हम देखेंगे

हम देखेंगे, हम देखेंगे  निश्चित है की हम भी देखेंगे  हम देखेंगे, हम देखेंगे  भारत एक हिन्दू राष्ट्र बना, हम देखेंगे  सब टूकड़ोंको फिर उसमे जुड़ा, हम देखेंगे  हम देखेंगे, हम देखेंगे आतंकके सारे पर्वत जब  रुईकी तरह उड़ जायेंगे  सब भूले भटके मुसाफिर तब  फिर लौटके घरको आएंगे  और घरके विभीषण सारे जब  मिट्टीमे मिलाये जायेंगे  हम देखेंगे, हम देखेंगे बस इश्वर नाम सुनाई दे  कोई राम कहो, जपो शंकर कोई  माँ के दरबार में हाजर कोई  हम सबमे ब्रम्ह बसा है हुआ  हिन्दू हूँ मैं और तुम भी हो  देवोंने धर्म सनातन दिया  हिन्दू हूँ मैं और तुम भी हो  हम देखेंगे, हम देखेंगे

चमचोंका शोर

चमचोंका उसके शोर है बोहत, झूठोँका यहाँ बोलबाला है  शिकवे भी ठीकसे करने नहीं देता, दुश्मन बड़ा रसूख वाला है घर मेरा है जला तो टीस भी मुझको ही होगी  दोस्त ही तो थे की आगमें जिन्होंने घी डाला है  बेवजह बात बनाना कभी आया नहीं हमें  जो दिलमें था ज़ुबाँसे केह डाला है  जवाब तो मेरे भी पास हैं, तीखे-तीखे, खरे-खरे हद है शराफतकी मुँहपर अब तक ताला है  बड़ी जोरसे हंस रहे हैं सब लूटकर जानेवाले  साहूकारों ने उन्हें बड़ी शिद्दतसे संभाला है  बेहरोंने अर्ज़ियोंकी रख्खी है सुनवाई  चोर हैं चौकीदार, कुछ तो गड़बड़ घोटाला है  मेरी हालतका मज़ाक बनानेवालों सोच लो  पलटकर तुमपर भी कभी ये वक़्त आनेवाला है 

Few sher on Sharaab

होशमें रहूं तो मुझसे कोई बात ना कर ए यार  बुरा मान जाता हूँ गर समझ आ जाए तो हुई शाम हाथोंमें जाम आ गया  सुब्हा से थे सफरमे, मकाम आ गया ये दिल तेरे बिना कहीं लगता नहीं  लगता है, लग रहा है मगर, लगता नहीं लड़खड़ा गए उसके शहरका पानी जो पी लिया  तौबा कोई शराबखाना ना दिखाना हमको कुछ बुँदोंने अब तक ज़िंदा रखा है हमें  दरिया तो मेरी प्यास कबसे अधूरी छोड़ गया 

उसकी तस्वीर देखकर

भूल जाते हैं अपने घर का पता, लोग, उसकी तस्वीर देखकर  आज हम भी तो देखें है बात क्या, चलो, उसकी तस्वीर देखकर  कई मनसूबे, बदमाश इरादे, तमन्नाएँ दिलमें उमड़ने लगीं  होलीके दिन एक रंगोंसे भीगी, उसकी तस्वीर देखकर नज़ारे कई हैं रौनकें ज़मानेमें, शबाब निग़ाहोंके आगे बोहत  नहीं लगता दिल और किसीमे अब, उसकी तस्वीर देखकर  कोयलें और भी सुरीली हो गयीं तितलियाँ नाज़ुक और भी  हो ना हो ये हुआ है सब, उसकी तस्वीर देखकर   वो पूछ रहे हालेदिल अपना, किन ख़यालोंमे खोये हैं हम  सारे जवाब खामोश हैं अब, उसकी तस्वीर देखकर  ये तो आलम है तडप का, बेचैनी का, इंतज़ार का  ताकने लगते हैं फिर उसे, उसकी तस्वीर देखकर  यूँ तो कई गज़लें उनसे हो कर निकली, उन तक जाने को  फिर भी हो जाता हूँ चुप हर बार, उसकी तस्वीर देखकर

दोस्त खो गए हैं, कोई मिला दो

 दोस्त खो गए हैं, कोई मिला दो  सुबह होते ही जो घर पहुँच जाते थे  खींच खींच कर जो होली खिलाते थे  एक प्रिया स्कूटर पर जब चार समाते थे  हर घर मुँह धोते और फिर रंग लगाते थे  कहाँ गया वो वक़्त, जब लौट मेरे घर सभी  मालपुवे और पकोड़े दबाकर खाते थे  वो रंग, वो पकवान, वो उनका यार  इंतेज़ारमें अब भी बैठे हैं, बता दो  दोस्त खो गए हैं कोई मिला दो 

वैलेंटाइनके पावनपर्व पर

फरवरीके इतवारको बैठे, सोच रहा यह व्याकुल मन  वैलेंटाइनके पावनपर्व पर, पत्नी को क्या करें अर्पण  क्या रुई भरे भालू से उनके मनको ख़ुशी मिल पायेगी  क्या बड़ीवाली चॉकलेटको वो डायटिंग छोड़के खायेगी  'हग' और 'किस' को तो शायद मेरा स्वार्थ समझा जाये  'प्रॉमिस' और 'प्रोपोज़' वाली बातोंमें शायद ना आये  घरके पीछे एक छोटासा बाग़ जो हमने लगाया है  पीला, लाल और पिंकवाला गुलाब उसमें उगाया है  हर रंगका अपना अर्थ अलग, सब अपनी जगह ठीक है  लेकिन ब्याहके पंद्रह साल बाद, शांति रंग प्रासंगिक है  सो हुआ तय की सफ़ेद गुलाब लाकर भेंट किये जाएँ  प्रेमसे बढ़कर शांति की है खोज हमें ये बतलायें  छेड़, ठिठोली हम करलें, एक मज़ाक और सही  घरमें उलझी लड़कीपर, एक कविता और कही  सहजीवनकी यात्रामें कभी दृष्टि कभी तुम पाँव, प्रिये  तपती दोपहरीमें शीतल पेड़की जैसे छाँव, प्रिये  ऐसी कोई भेंट नहीं ना ऐसा कोई भाव, सखी   बस प्रेम, समर्पण, चाहत, मेरातेरा लगाव, सखी  करलो स्वीकार, फिर एक बार, जो हर बार तुम्हारा है  कुछ दुःख हों पर ज्यादा खुशियां ह...

पिला दे मुझको

ज़ाम भर लबोंसे तेरे, आंखोंसे पिला दे मुझको  लड़खड़ा रहा हूँ थाम, हाथोंसे, पिला दे मुझको सुरूर हुआ की मत्ला ख़ुदबख़ुद हो गया  ग़ज़ल लिख दूँ ग़र इक बार पिला दे मुझको इश्क़, मोहब्बत, प्यार, आशिक़ी, तेरे लिए, बस, तेरे लिए  साक़ी मेरे यार, पिला दे मुझको

નવ વર્ષ નિમિત્તે

વિસરાઈ ગયેલી યાદોનો ફરી સાથ થયી જાય  જુના મિત્રોનો એક વાર સંગાથ થયી જાય  નવા વર્ષે બધું નવું હોય એવી ચાહત નથી  મનથી માણીશું જો કોઈ જૂની વાત થયી જાય 

रहता है

हर शाम किसी ग़ज़ल के असर में रेहता है  कहीं भी हो दिल उसके पास घर में रेहता है बड़ा आदमी बन चला है वो अब तो  आये दिन नयी खबरमें रहता है  दोस्तों के वहां आनाजाना भी बंद हो गया  वो कस्बों का बाशिंदा अब शहरमें रहता है  मेरे नामवाला, मेरा ही हमशक्ल,  एक अजनबी बोहत वक़्तसे मेरे घरमें रहता है  कई रोज़से ख्वाबमें मिले नहीं उनसे  दिल शायद औरके असरमें रहता है  कुछ बहाने, कई झूँठ और फ़सानोंकी है दौलत  दिलका झुकाव कभी अगर, कभी मगरमें रहता है  इक पल के ही लिए सामने आया था मगर  हर पल अब वो चेहरा नज़रमें रहता है  मंज़िलों से रूठा हुआ एक मुसाफिर  थक गया लेकिन सफरमें रहता है  रेतकी तरह उँगलियोंसे फिसल गया मगर  बीता वक़्त अब भी दीवारों दरमें रहता है  कुछ देर और खेल लूं बच्चोंके साथ  दिल आजकल किसी डर में रहता है  झपकते ही पलकें बीत गया था जो  बचपन सेहमासा किसी दफ्तरमें रहता है  एक अदू से बोहत पहले बच निकला था मैं  साया बनके मेरे साथ हर डगरमें रहता है