Skip to main content

वैलेंटाइनके पावनपर्व पर

फरवरीके इतवारको बैठे, सोच रहा यह व्याकुल मन 
वैलेंटाइनके पावनपर्व पर, पत्नी को क्या करें अर्पण 

क्या रुई भरे भालू से उनके मनको ख़ुशी मिल पायेगी 
क्या बड़ीवाली चॉकलेटको वो डायटिंग छोड़के खायेगी 

'हग' और 'किस' को तो शायद मेरा स्वार्थ समझा जाये 
'प्रॉमिस' और 'प्रोपोज़' वाली बातोंमें शायद ना आये 

घरके पीछे एक छोटासा बाग़ जो हमने लगाया है 
पीला, लाल और पिंकवाला गुलाब उसमें उगाया है 

हर रंगका अपना अर्थ अलग, सब अपनी जगह ठीक है 
लेकिन ब्याहके पंद्रह साल बाद, शांति रंग प्रासंगिक है 

सो हुआ तय की सफ़ेद गुलाब लाकर भेंट किये जाएँ 
प्रेमसे बढ़कर शांति की है खोज हमें ये बतलायें 

छेड़, ठिठोली हम करलें, एक मज़ाक और सही 
घरमें उलझी लड़कीपर, एक कविता और कही 

सहजीवनकी यात्रामें कभी दृष्टि कभी तुम पाँव, प्रिये 
तपती दोपहरीमें शीतल पेड़की जैसे छाँव, प्रिये 

ऐसी कोई भेंट नहीं ना ऐसा कोई भाव, सखी  
बस प्रेम, समर्पण, चाहत, मेरातेरा लगाव, सखी 

करलो स्वीकार, फिर एक बार, जो हर बार तुम्हारा है 
कुछ दुःख हों पर ज्यादा खुशियां हों ये संकल्प हमारा है 

इन आड़े टेढ़े मुक्तक को ही भेंट बनाकर दे दूं क्या 
या प्रेम सदा तुमसे ही है, गले लगाकर केहदूँ क्या

फरवरीके इतवारको बैठे, सोच रहा यह व्याकुल मन 
वैलेंटाइनके पावनपर्व पर, पत्नी को क्या करें अर्पण 

Comments

Popular posts from this blog

कभी ना थे.....

हालात इतने बदतर कभी ना थे  दिलों पे पत्थर कभी ना थे  माना की आप दोस्त नहीं हमारे दुश्मन भी मगर कभी ना थे  लाख छुपाएं वोह हाले दिल हमसे  अनजान मन से हम कभी ना थे ग़म का ही रिश्ता बचा था आखिर  ख़ुशी के यार हम कभी ना थे  कौन हौले से छू गया मन को  नाज़ुक अंदाज़ उनके कभी ना थे चीर ही देते हैं दिल बेरहमीसे  बेवजह मेहरबान वोह कभी ना थे  नज़रों की बातों पे भरोसा करते हैं  शब्दों के जानकार तो कभी ना थे  बिन कहे अफसानों को समझ लेते हैं  लफ़्ज़ों के मोहताज कभी ना थे  सामने तो अक्सर आते नहीं गायब सरकार मगर कभी ना थे याद ना करें शायद वोह हमें  भुलने के हक़दार मगर कभी ना थे 

हो सकता है

प्यार करलो जी भरके आज ही,  कल बदल जाएँ हम-तुम हो सकता है ज़िन्दगी पकड़लो दोनों हाथोंसे,  वक़्त इस पल में ठहर जाये हो सकता है जो बीत चूका वो ख़यालों में अब भी ज़िंदा है  पहली मुलाक़ात और सफ़ेद जोड़ेमें सजी तुम  बंद होते ही आँखें देख लेता हूँ, पलंग पर बैठे  और गुलाब की खुशबु से महकती हुई तुम यादों से मेरी तुम चली जाओ कभी ना होगा  मैं खुद ही को भूल जाऊँ हो सकता है  दो थे हुए एक, जिंदगीके सफरमें हम  तस्वीरोंको नए रंग मिले जब तुमसे मिले हम  फुलवारीमें खिले नए फूल, तुम्हारी मुस्कान लिये मकान घर बन गए, जब तुमसे मिले हम  बैठ फुर्सतमें टटोलें पुराने किस्से, और हम उन्हींमें लौट जाएँ हो सकता है   बरसों की कश्मकशने बदल दिया है चेहरे को रंग रूप भी जिंदगीके साथ घट-बढ़ गए हैं  जो लहराते थे खुल के हवाओं में, घटाओं से  तुम्हारी साडीके नीचे जुड़े में बंध गए हैं  सुबह सुबह उन भीने केशों को तुम खोलो  और सावन आ जाये हो सकता है मैं और भी बदलूंगा आने वाले वक़्त में तुम भी शायद ऐसी नहीं रहोगी जिम्मेदारियां घेरेंगी और भी हमको बच्चोंकी फरम...

सफ़र...

हर सफ़र जो शुरू होता है, कभी ख़त्म भी होना है  हर हँसते चेहरे को इक बार, गमें इश्क में रोना है  मिलकर के बिछड़ना, फिर बिछड़कर है मिलना;  ये प्यार की मुलाकातें, हैं इक सुहाना सपना  हर रात के सपने को, सुबह होते ही खोना है;  हर हँसते चेहरे को इक बार, गमें इश्क में रोना है  है याद उसकी आती जिसे चाहते भुलाना;  दिलके इस दर्द को है मुश्किल बड़ा छुपाना  ऐ दिल तू है क्या, एक बेजान खिलौना है;  हर हँसते चेहरे को इक बार, गमें इश्क में रोना है  परवाने हैं हम किस्मत, हस्ती का फना होना;  पाने को जिसे जीना, पाकर है उसको मरना  हर शाम इसी शमा में जलकर धुआं होना है,  हर हँसते चेहरे को इक बार, गमें इश्क में रोना है  चंद लम्हों की ज़िन्दगी है मोहब्बत के लिए कम  किसको करें शिकवा, शिकायत किससे करें हम  हिज्रकी लम्बी रातों में यादोंके तकिये लिए सोना है हर हँसते चेहरे को इक बार, ग़में इश्क़ में रोना है  बेख़यालीमे अपनी जगह नाम उनका लिक्खे जाना  दीवाने हो गए फिर आया समझ, क्या होता है दीवाना  जूनून-ऐ-इश्क़से तरबतर दिलका हर ए...