तबीयत मेरी भी अब पेहले सी रही कहाँ
हर वक़्त, हर किसीको मिल जाता नहीं
नीम के पत्तोंका ज़ायका भा गया शायद
बाज़ारू मीठे पकवान जल्द खाता नहीं
शुक्र भगवानका, संभाल लेता है मुश्किलमे
और ये भी के कभी एहसान जताता नहीं
दोस्त वो भी हैं, वक़्त के हिसाबसे मिलते हैं
बात करता तो हूँ पर अब बातमें आता नहीं
कुछ उम्र का लिहाज़, कुछ खौफ ज़मानेका
नयी कलियोंको देख पेहलेसा मुस्कुराता नहीं
नज़र से नज़र का मिलना इत्तेफ़ाक़ ही समझो
यूँ दिल हर किसीसे अब लगाता नहीं
एक दीदारको मीलों पैदल चला करते थे कभी
जबसे शहर छोड़ा है उसने, सैर पर जाता नहीं
सुबह सुबह उनकी तस्वीर देख लिया करता हूँ
नमाज़ छोड़ दी है मैंने, अब सजदे भी जाता नहीं
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