होठों तक पहुंचा मगर प्यास ना बुझा पाया
वो जीवन क्या जो किसीके ना काम आया
आँखें भर आती है खिलखिलाहटें याद करके
वो रिश्ता क्या जो खुलके हंसा ना रुला पाया
उदासी बढ़ गयी और भी, फ़ोन जब लगा नहीं
वो याद ही क्या, रात भर जिसने ना तड़पाया
जाने क्यों केहते केहते रुक गया मुझसे यार
वो दोस्त क्या जो बेझिझक ग़म ना बाँट पाया
उसके नामके हर अक्षर को भुला दिया लेकिन
वो दीवाना चाहकर भी एक नाम ना भुला पाया
उसके खत के पुर्जे किये, ख़ाकमें मिला दिया
वो पन्ना नाम उसका था जिसमे ना जला पाया
यूँ तो बोहत देरसे नज़रें ताक रही थी उन्हें
वो मुड़े इस तरफ तो निगाहें ना मिला पाया
ये काले बादल फिर आज घेरके बैठे हैं आसमान
वो भी अपनी उम्मीदका दिया फिर ना बुझा पाया
एक ख्वाब खुली आंखोंमे आकर बस गया कभी
वो जागता ही रहा पलभरभी आँख ना लगा पाया
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