अलसाई दोपहरोंमें सावनके बादलों को देख
एक कविता मनमें आकार लेने लगती है
जैसे हवाएं काले मेघ उड़ाकर मेरी छत पर ले आयीं
वैसे ही ये काव्य एक नाम लाकर जिह्वा पर छोड़ गया
नयन उठाये, हृदयमे आशा भरे, आकाश निहार रहा हूँ
लेखनी कागज़ पर टिकाये वैसे ही प्रतीक्षा में हूँ की
अब फटेंगे बादल भावनाओंके, अब बरसेंगे अभ्र
अब ख़याल आकार लेंगे, अब शब्द बनेंगे शायरी
और प्यासी धरा तृप्त होगी बरखा के आने पर जैसे
मेरे उर में भी वैसा ही हर्ष व्याप्त होगा काव्य बन जानेपर
यकायक पवन तेज़ चल पड़े, बादल बिखर गए
अचला फिर इन्तेज़ारमे रह गयी, वर्षा नहीं आयी
कदाचित ये नज़्म भी अधूरी रेह जाएगी आज
और वो नाम जबान पर ठेहरेगा नहीं, दिलमे लौट जायेगा
Comments
Post a Comment