इब्तेदा ए ग़ज़ल होती है जब एक नज़र देखते हैं
मुक़म्मल हो जाती है उन्हें जब जी भर देखते हैं
वो आये, बैठे, कुछ बात की और चल दिए
मुन्तज़िर नक्शेकदम कभी रहगुज़र देखते हैं
चाँद से पेहले तेरा दीदार माँगा है अबकी
चलो हम भी दुओंका असर देखते हैं
तुमने लगायी जो तस्वीर किसी दीवारकी भी गर
गज़ब लत है की हम उसे भी अक्सर देखते हैं
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