वो केश अब संवारती नहीं
बाँध लेती है जुड़ेमें जोरसे
पेहलेसी घटाएँ पसारती नहीं
वो केश अब संवारती नहीं
समय कम रहता है बोहत
उसके पास सजनेके लीये
वक़्त कभी बचता ही नहीं
किसी हसीन सपनेके लीये
बाहें बालमके गले उतारती नहीं
वो केश अब संवारती नहीं
तैयारी बच्चोंके स्कूल जानेकी
जूते चमकाने, टिफिन बनानेकी
घरके सब काम करनेके बाद
खाना खिलाने, होमवर्क करानेकी
ज़िम्मेदारी तो कोई नकारती नहीं
बस, वो केश अब संवारती नहीं
गीले बालोंसे ओस की बूंदें गिरा
कभी मुझको उठाया करती थी
या बिखरी काली ज़ुल्फ़ों तले
कभी मुझको सुलाया करती थी
सितम ऐसे कोई मुझपर गुजारती नहीं
वो केश अब संवारती नहीं
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