शायरी से है प्रेम, कवितासे मोहब्बत है मुझे
कुरेदना दिलके ज़ख्म रोज़, आदत है मुझे
अब कोई यार पेहले सा अज़ीज़ नहीं रहा
अपने लिए बोहत आजकल फुर्सत है मुझे
उसकी हर तस्वीरको बार बार देखता हूँ
ये क्या गज़ब नशा, अजीब लत है मुझे
दौलतें गिरीं पैरों पर, झुक कर उठा ना सके
इसी उसूलपरस्तीसे अब नफरत है मुझे
फिलवक्त अर्ज़ियाँ नामंज़ूर कर रहा लेकिन
सुन सब रहा है मेरा राम, अक़ीदत है मुझे
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