भर रहे हैं घाव मेरे वक़्तके इलाज से
टीस भी चली गयी अब तो तेरी याद्से
ग़म की कुछ कमी सी मेरी शायरीमे पड़ गयीं
ये गज़ब की अब निगाह औरोंसे भी लड़ गयीं
सांसें तेज़ होती ना, तेरी गलीके मोड़पर
ना आँख होती नम ये सोच तू गयी क्यों छोड़कर
जुड़ रहे हैं टुकड़े दिलके फिर से आके तोड़ दे
थाम मेरा हाथ और बेरुखीसे छोड़ दे
मेरी एक इल्तेजा मान ले ए जानेजां
लुत्फ़-ए-दर्द दे, ग़मे इश्क़ मुझपर फेर दे
आ मेरे यार मेरे ज़ख्म कुरेद दे
Comments
Post a Comment