कुछ कवितायेँ, कुछ शेर, कुछ नग्मोंकी थाती है
दिलसे निकलकर कुछ बातें, गीतोंमें आती हैं
हमने कब मन्ज़िलको सोचकर किया सफर शुरू
चल पड़े जिस भी डगर, तुम तक ले आती है
इंसानियत है की खैरात भी एहतिरामसे दी जाये
ज़रूरतें घुटनों पर बड़े बडोंको ले आती है
गुब्बारे मिलते ही खिलखिलाने लगे बच्चे फिर
सस्तमे इतनी कीमती नेमत मिल जाती है
दीवाली मिलने आये बेटे-बहू, पोते-पोतीके लीये
दुखते घुटने लिए माँ रसोइमे जुट जाती है
उसकी गलीसे आज भी गुज़रता हूँ मैं जब
कनखियोंसे देखती है और मुस्कराती है
सुबहसे शाम तक खड़े खड़े कमर दुखती तो है
रातको फिर भी साजनके वो पैर दबाती है
बोहत लड़ झगड़कर घरसे निकला था मैं कल
कलसे ही घरकी बोहत याद मुझे आती है
बालूशाही खिलानेवालेके वहां स्वागतमे पानी-गुड़
तक़दीर कभी ऐसा भी वक़्त दिखाती है
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