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नग्मोंकी थाती

कुछ कवितायेँ, कुछ शेर, कुछ नग्मोंकी थाती है 
दिलसे निकलकर कुछ बातें, गीतोंमें आती हैं 

हमने कब मन्ज़िलको सोचकर किया सफर शुरू 
चल पड़े जिस भी डगर, तुम तक ले आती है 

इंसानियत है की खैरात भी एहतिरामसे दी जाये
ज़रूरतें घुटनों पर बड़े बडोंको ले आती है 

गुब्बारे मिलते ही खिलखिलाने लगे बच्चे फिर
सस्तमे इतनी कीमती नेमत मिल जाती है

दीवाली मिलने आये बेटे-बहू, पोते-पोतीके लीये 
दुखते घुटने लिए माँ रसोइमे जुट जाती है

उसकी गलीसे आज भी गुज़रता हूँ मैं जब 
कनखियोंसे देखती है और मुस्कराती है

सुबहसे शाम तक खड़े खड़े कमर दुखती तो है 
रातको फिर भी साजनके वो पैर दबाती है 

बोहत लड़ झगड़कर घरसे निकला था मैं कल 
कलसे ही घरकी बोहत याद मुझे आती है

बालूशाही खिलानेवालेके वहां स्वागतमे पानी-गुड़ 
तक़दीर कभी ऐसा भी वक़्त दिखाती है 

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कभी ना थे.....

हालात इतने बदतर कभी ना थे  दिलों पे पत्थर कभी ना थे  माना की आप दोस्त नहीं हमारे दुश्मन भी मगर कभी ना थे  लाख छुपाएं वोह हाले दिल हमसे  अनजान मन से हम कभी ना थे ग़म का ही रिश्ता बचा था आखिर  ख़ुशी के यार हम कभी ना थे  कौन हौले से छू गया मन को  नाज़ुक अंदाज़ उनके कभी ना थे चीर ही देते हैं दिल बेरहमीसे  बेवजह मेहरबान वोह कभी ना थे  नज़रों की बातों पे भरोसा करते हैं  शब्दों के जानकार तो कभी ना थे  बिन कहे अफसानों को समझ लेते हैं  लफ़्ज़ों के मोहताज कभी ना थे  सामने तो अक्सर आते नहीं गायब सरकार मगर कभी ना थे याद ना करें शायद वोह हमें  भुलने के हक़दार मगर कभी ना थे 

हो सकता है

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