सफरमे मिल गये दो अजनबी थे हम कभी
हुई बात-चीत फिर करीब आये, दोस्त बन गये
अलग थीं जबकी मंज़िलें, कुछ देर साथ चलते ही
हुआ ये इत्तेफ़ाक़ साथ ही में फिर निकल लिये
याद कर शैतानियां, शरारतें, मुसीबतें
मिलके ढाई थीं, क्या याद है वो आफतें
घंटों इन्तेज़ारमे ताकना वो रास्ते
शेर जो मैंने लीखे, तेरी वालीके वास्ते
वो मनघडंत कथाएं, झूठ-सच सभी कहानियां
बढ़ा चढ़ाके करता था मेरी जो तू बड़ाइयाँ
ढेर सारा खिलखिलाना, रूठना, रोना कभी
मुश्किलोंके हल दिलाता साथमे होना कभी
इक नए पड़ाव पर आयी भले है ज़िन्दगी
शोहरत, सफलता और धन लायी भले है ज़िन्दगी
यार आज भी वोही दो चार अपने ख़ास हैं
दोस्त हैं कमीने लेकिन दिलके अपने पास हैं
Comments
Post a Comment