लड़खड़ायें तो सहारा कोई मिले
मझधारमे किनारा कोई मिले
हम भी चैनसे सो लें इक बार गर
संदेसा जो तुम्हारा कोई मिले
कहानियोंके किरदार बदल लेंगे
हम घर, शेहर, व्यापार बदल लेंगे
दो कमीज, एक पतलून, साथ हैं अपने
सब छोड़ चल पड़ें, इशारा कोई मिले
लगता है की रूठे हुए हैं आजकल
इतराये या ऐंठे हुए हैं आजकल
छेड़ें या चुम लें, बस मना लें उनको
मौका बातचीतका, दोबारा कोई मिले
Comments
Post a Comment