हर शाम किसी ग़ज़ल के असर में रेहता है
कहीं भी हो दिल उसके पास घर में रेहता है
आये दिन नयी खबरमें रहता है
दोस्तों के वहां आनाजाना भी बंद हो गया
वो कस्बों का बाशिंदा अब शहरमें रहता है
मेरे नामवाला, मेरा ही हमशक्ल,
एक अजनबी बोहत वक़्तसे मेरे घरमें रहता है
कई रोज़से ख्वाबमें मिले नहीं उनसे
दिल शायद औरके असरमें रहता है
कुछ बहाने, कई झूँठ और फ़सानोंकी है दौलत
दिलका झुकाव कभी अगर, कभी मगरमें रहता है
इक पल के ही लिए सामने आया था मगर
हर पल अब वो चेहरा नज़रमें रहता है
मंज़िलों से रूठा हुआ एक मुसाफिर
थक गया लेकिन सफरमें रहता है
रेतकी तरह उँगलियोंसे फिसल गया मगर
बीता वक़्त अब भी दीवारों दरमें रहता है
कुछ देर और खेल लूं बच्चोंके साथ
दिल आजकल किसी डर में रहता है
झपकते ही पलकें बीत गया था जो
बचपन सेहमासा किसी दफ्तरमें रहता है
एक अदू से बोहत पहले बच निकला था मैं
साया बनके मेरे साथ हर डगरमें रहता है
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