आना हो जब, आ सकते हो, अब भी वहीँ हूँ मैं
दास्ताँ अपनी सुना सकते हो, अब भी वहीँ हूँ मैं
इक मुस्कान भर काफी है धड़कनें तेज़ करने को
जब चाहो ये सितम ढा सकते हो, अब भी वहीँ हूँ मैं
मुरझाये से शजर हो चले बिछड़े जबसे तुम औ हम
एक धक्केमे अब गिरा सकते हो, अब भी वहीँ हूँ मैं
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