दास्तान अपनी इन्हीं गीतोंमें गा रहे हैं
लिखे थे तुम्हारे लिए, जगको सुना रहे हैं
ग़ज़लका मोज़ू, शायरी की तम्हीद हो तुम
तुम्हारा है दर्द जो शायरी में लिखे जा रहे हैं
ऐसा नहीं की मिलनेको बेकरारी है कम
तुम्हारे लिए ही रंग बालोंमे लगा रहे हैं
शाख़ पर अकेला जिन्हें छोड़ गए परिंदे
घोंसले अब वो मेरे सपनों में आ रहे हैं
किसी दिन तो गुमनामीके अँधेरे छंटेंगे
रोज़ाना नया कलाम लिखे जा रहे हैं
ये जो जब्त किये बैठे हो सारी रौशनी
ख़बरदार की मंच पर अब हम आ रहे हैं
सुख़नवर हो तुम, भरम छोड़ दो राज
ये देखो फिर वो बिना पढ़े जा रहे हैं
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