चरण छूकर एक प्रणाम कर रहा हूँ
अपने बडोंका एहतराम कर रहा हूँ
अपने बडोंका एहतराम कर रहा हूँ
दीया क्या दिखायेगा सूरजको रौशनी
अपनी हस्तीसे बड़ा काम कर रहा हूँ
गरुड़के सहारे गौरैया लाँघी हिमालय
खुदके लिए वही इंतेज़ाम कर रहा हूँ
खुदके लिए वही इंतेज़ाम कर रहा हूँ
जो भी है हुनर, उनकी ही बरकत है
ये कृतिभी उन्हींके नाम कर रहा हूँ
उपनिषदोंकी मानिंद पढ़ता रहा उन्हें
आज भी वही मैं सकाम कर रहा हूँ
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