सरमस्त हो गये थे उसने जो छू लिया इक रोज़
नशा वही तलाश, थोड़ा और, मिला लो यारों
सुरूर उसके हुस्नका अब तक हल्का नहीं हुआ
बेकार रखे ये जाम मेरे सामने, हटा लो यारों
नयी कलियोंके खिलनेकी मेहक आई दफ़अतन
फ़ुरसतसे किसी शाम हवेली पर, बुला लो यारों
शोहरत मिली ना दौलत, इश्क़में भी नाकाम रहा
रौशनीके तो काम आये, ये कलाम, जला लो यारों
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