माना की इम्तेहान-ए-किताब-ए-मोहब्बतमें नाकाम रहा
पेहलुमे रहा जब तलक तेरे, दिलको ज़रा आराम रहा
दावे नहीं कोई कीये रूहानी चाहत, जन्नती प्रीतके मैंने
असासी इश्क़ था तुझसे, बस तुझसे ही मुझे काम रहा
अपने नामके साथ तेरा नाम जोड़ लिखता रहा बरसों मैं
छोड़ दिया चलन, तहरीरको फिर भी, याद तेरा नाम रहा
तारीफ तेरी, जमाल तेरा, तौसीफ तेरा ही बखान हुआ
मेहफिलमे ग़ज़ल जब कही मैंने, चर्चा तेरा तमाम रहा
रूह महक गयी जब उँगलियोंसे तुझे छुआ इक रोज़
एहसास उस एक लम्सका ताउम्र, सुब्ह-ओ-शाम रहा
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