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Showing posts from 2020

भोर के साथ संवाद

भोर की पेहली किरन के साथ ये संवाद है  दिन नया, अवसर नया, करनी नयी शुरुआत है  राह में थे जो भी पत्थर हो भले अब भी खड़े  जीत हार गौण है, है मुख्य तुम कैसे लड़े  मत रुको, आगे बढ़ो, लक्ष्य प्राप्ति होने तक  चलते रहो अविराम मार्ग की समाप्ति होने तक  ध्येय मिल जायेगा श्रम करते रहो विश्वास है  भोर की पेहली किरन के साथ ये संवाद है  मृदु रस्सियों की मार से पत्थर भी कट जाते हों जब बेहती निरंतर धार से पर्वत भी छंट जाते हों जब  क्या योग्य है की ना करो तुम यत्न पूरा बार बार  चीटियों के झुंड भी कैलाश चढ़ जाते हों जब  गिरना सफर का भाग है, मत हो निराश याद कर  गिरके ही सीखा चलना था, उठजा के मत फरियाद कर  हर अँधेरी रात का तो अंत नया प्रभात है  भोर की पेहली किरन के साथ ये संवाद है  था सरल कल भी नहीं, ना कल सरल हो जायेगा फेर लो मुंह तो कहीं संकट नहीं टल जायेगा आज डर के भाग लो, पर याद रखना ये सदा  कल किसी भी मोड़ पर फिर सामने आ जायेगा  विपदाओं की मार जो डिगा दे तुम्हें विश्वास से  हो स्मरण की जीत है जो ना थके प्रयास से...

क्युँ?

कोई पूछे ये इंतज़ार क्युँ? बतादो दिलमे प्यार क्युँ? जानते तो वो भी होंगे हाल अपना  क्या बताएं हम बेक़रार क्युँ? अँधेरे तो आते हैं आते रहेंगे  हम मुकाबलेमें दीप जलाते रहेंगे  जंग क़यामत तक है भली-बदी में  समझे ये हमसे तकरार क्युँ?

थक चूका हूँ मैं

बस करो यारों, थक चूका हूँ मैं  सुन सुन के नसीहत, थक चूका हूँ मैं  क्या क्या तीर मारे हैं जमानेमे तुमने  मुझे मत बताओ, थक चूका हूँ मैं  चैन से सोने भर की ख्वाहिश है  कुछ ना कहने ना करने की ख्वाहिश है  तुम अपनी शान के कसीदे खूब गाओ  मेरे कानों को बक्शो, थक चूका हूँ मैं  एक और बेवजह का ऐलान कर दिया  सरकारने फिर से हमें हैरान कर दिया  होगा कुछ नहीं, ना कुछ करने की दानत है  दिखावे हैं, इन दिखावों से थक चूका हूँ मैं  लाइलाज है बीमारी बता चुके हो मुझे  फिर भी लम्बे चौड़े बिल थमा चुके हो मुझे  कुछ नया तो कर नहीं पाते हो तुम ही  पुराने फैलसफे मत झाड़ो, थक चूका हूँ मैं मेरी परवाह हो तो कोई ज़मीनी काम करलो  लगाओ तिकड़म, वीआईपी सारे आम करलो  तुम्हारी रैलियां और पार्टियाँ सबसे ज़रूरी हैं माना  मेरे त्यौहारों को मत छीनो, थक चूका हूँ मैं  भद्दा एक मज़ाक बन गयी है ज़िन्दगी राशन और सब्जी की कतार में कटते हुए  रोज शाम नए फतवे निकाल कर इसे  बिग बॉस मत बनाओ, थक चूका हूँ मैं 

मेरा इश्क़

खामोश समंदर सा इश्क़ है मेरा  गहराइयों का पता लगा न सकोगे कितने ही बहाने बनालो खुदसे  दिलसे मुझे भुला न सकोगे  जलता दिया नहीं सूरज की रौशनी सा है  आंधियां कितनी भी हो वजूद मिटता नहीं  गर जला भी दे ज़माना तो और निखर जायेगा  ज़र-ऐ-इश्क़ को अंगारों से बुझा न सकोगे 

तेरा एहसास

तेरे शहर की गलियों से गुज़रे  न जाने कितने दिन रात मेरे  एक दीदार की ख्वाहिश में  दोपहरें यारों की छतों पे कटीं  कॉलेज से घर तक का रास्ता जो  दुपट्टे की सरसराहट से गूंजता था  कई बार दिल लौट जाता है वहीँ तेरे एहसास को ढूंढते हुए

गणेश वंदना

गजानन हो स्वीकार ये अर्चना  कार्य जो भी कठिन हो सुगम कीजिये  निवेदन है प्रथमेश कविता का ये  लेखनी की त्रुटि सारी हर लीजिये  व्याकरण और भाषा का संधान हो  ऐसे छंदों की रचना करवाइये  जो भी शब्दों में कमियाँ दिखाई पड़ें  भावना की सच्चाई से भर दीजिये 

सरस्वती स्तुति

माँ शारदे तुझको नमन, इतनी किरपा करदे  लिखने को दे भाव नए और कविता को हुनर दे  गद्य पद्य सब साध्य करुँ , बोली-भाषा उत्तम हों  मुक्तक सहज ह्रदय छू लें, शब्दों को ये असर दे

Happy Deewali

लाल कौशल्या के लौटकर आएं हैं  जानकी के पति आज घर आए हैं  है अँधेरा घना सारा छंट जायेगा   दीप खुशियों उम्मीदों के प्रगटाए हैं  घर से निकले थे युवराज पद छोड़कर  संग लखन जानकी के अवध छोड़कर  कैसी कैसी परीक्षाएं जीते हैं तब  वर्ष चौदह में भगवान बन पाए हैं  धूल घर और मन की झटक दी गयी  नए लीपन दीवारों पे लगवाए हैं  संकटों से घिरे इस कठिन दौरमें  नयी आशा सभी के लिये लाए हैं  नए वस्त्रों, नए सारे श्रृंगार में  रौशनी झिलमिलाती है त्यौहार में  मिठाई, दीये और रँगोलियाँ  खूब खाये, जलाये, बनवाये हैं  फुलझड़ी हैं चमकती अनारों के संग  चकरी भी तो पटाखों के संग आयी हैं  रस्सियां जल रहीं,  सांप फुंफकारे हैं  आतिशें सब हवाई चलवाये हैं  ये दुआ है हमारी की बरसें बोहत  रौनकें और ख़ुशियाँ तुम्हारे लिए  जो भी तुमसे जुड़ा हो उसे भी मिलें  कामनाओंके फल शुभ जो भिजवाए हैं  दिन दीवाली का आता नहीं रोज़ है  रोज़ मिलते नहीं दोस्त यारों से अब  दूरियां तो ज़माने की ताकीद हैं  मन से मन ...

कड़वाहट

मेरे भीतर चलता रेहता  युद्ध जो लम्बे अरसे से  रोज़ हार कर लड़ने का  रोज़ जुटाता साहस हूँ काल है बसता माथे में  जो नाशकी ओर धकेल रहा  कड़वाहट भर सीने में  मन में ज़हर उड़ेल रहा  गलत शब्द गलत बातें  चाहे जितनी कोशिश कर लूँ  मुझसे होकर रहती हैं  ना जाने किस अंत की ओर  मेरा जीवन दौड़ रहा  वैसे तो सब कुछ है मिला  पर जैसे कुछ भी मिला नहीं  खुदसे ही नाराज़ी है औरों से कोई गिला नहीं  कहाँ से आया है मुझमे  या पहले ही बसा हुआ  ये नफरत का ज्वाला जाने  कब से अंदर जला हुआ  ना कोई काम ही होता है  ना संतुष्टि मिलती है  सुबह से लेकर राततक  बस वक़्त काटता रहता हूँ  माँ बाप दुखी, दुखी पत्नी  बेटे बेटी भी सुखी नहीं  परिवार है ऐसे साथ साथ  पर सम्मान ना पाता हूँ  दोस्त यार जो भी थे मिले  ज्यादातर सब छूट गए  जो बचे रहे या नाम के हैं  या मतलब देखकर रुठ गए  सबको खुश करते करते  अब सबसे गुस्सा रहता हूँ  अपने मन को बहलाने के  ज़रिये खोजता रहता हूँ  ये...

मज़हबी सियासत

क्यों ये ज़िद, कैसी ये आफत है,  बात मज़हब की, हो रही सियासत है  नमाज़ क्यों मंदिर में, क्यों मस्जिदमे पूजा  अपनी अपनी जगह भक्ति औ इबादत है  बुराई को बुरा केहनेसे मत डरो  इन हलातोंकी ज़िम्मेदार यही आदत है  भाई भाई के नारोंने बेडा गर्क किया चीन हो या पाक दोनों बेगैरत है  मुसलमाँको जो आज़ादी और सुकूँ की तालिब   हिन्दुकी भी तो अरदास वही इज़्ज़त है  आग को है आवश्यक डर पानी का  गुनाहों को रोकती अंजामकी देहशत है  लंका हो मगध या हस्तिनापुर  नाश हों पापी तभी हिफाज़त है  पडोस के गुंडे से दब जाना  दुःख को न्योता देती ये हरकत है  तलवार का काम दीयों से नहीं होगा  बार बार ज़ुल्म सहना भी ज़िल्लत है  हाथों से ना सही दिल से तो लड़ो  आत्मरक्षा की कानून में इज़ाज़त है  जिसके खिलाफ हो उस जैसा मत बनो  अपनी पहचान बनी रहे यही हसरत है 

कामयाबी से पेहले

सोच की दीवारें ख़यालों के पेहरे हैं  कठिनाइयाँ तसव्वुरमें बेवजह ठेहरे हैं  ख्वाब देखनेमें गँवा दिए जो मौके  नज़र आते नहीं ज़ख्म उनके गेहरे हैं  हालात देखकर मेलजोल बदल लेते हैं दोस्त रिश्तेदार सब के कई चेहरे हैं  थोड़ा मतलबी हो जाएँ ये भी जरुरी है  सादगीको कहाँ कामयाबी के सेहरे हैं  हुनर ही नहीं ढिंढोरा भी चाहिए  भीड़ ज़्यादा और फ़ैसलासाज़ बेहरे हैं  कदम वापस हों तो शिकस्त मत समझना  पीछे लौटकर ही आगे बढ़ती लेहरे हैं  शख़्सियत में नमक रक्खो बचाव जितना  समंदर से क्या कभी निकली नेहरे हैं  सरलता सफल होने के बाद छजती है  नाकामीके कोई मुकाम न देहरें हैं 

तरसते रहे

इक मुलाकात को हर दिन तरसते रहे  बूंदें न गिरी हम पर बादल बरसते रहे  नज़रें दर्पण बनी बैठी थी इंतज़ार में  वो आईने को देख सजते संवरते रहे  लोगों ने कहा सब आँखों का छलावा है  मोहब्बत होगी तुमको उनका दिखावा है  वो पथरीले किनारे हम समंदर की लहरें  टकराकर उनसे दिल टूटते बिखरते रहे  पास आकर भी पास आये नहीं  दर्द थे बहुत हमने जताये नहीं  तकलीफसे उनके हाथोंको बचाने को  खुद ही खोद कब्र खुद ही उतरते रहे  भूल जाने का फैसला फिर किया हमने   जा आखरी अलविदा कर दिया हमने  ज़िक्र अब तेरा क़यामत के रोज़ होगा  रोज़ भले गलियोंसे तेरी होकर गुज़रते रहे चालाकी उनकी उन्हीको महंगी पड़ी  सादगी से हम तो ज़हर भी पीते रहे  रोने से कहाँ लौटेंगे लम्हें जो बीत गए  था वक़्त कभी तेरी यादों में जीते रहे 

Ex-girlfriend

नाम उनका अचानक सुनाई दिया  नंबर अनायास कहीं दिखाई दिया  नाज़ुक लम्हें यादों में ताज़ा हो गए  व्हाट्सप्प पर जब उसने रिप्लाई दिया  बातें फिर हुई शुरू दो-चार कुछ गीले शिकवे थोड़ी तकरार  सब मसले खुद ही हल हो गए  वीडियोकॉल पर जब चेहरा दिखाई दिया  वादे किये जल्द ही मिलने के  ज़ुल्फ़ोंमें उलझनेके बाहोंमे घुलने के  दिलको चैन मिला तब जाकर जब  ट्रैन का रिजर्वेशन अप्लाई किया  आ ही गए आखिर शहर में मेरे  मजबूरियां हैं कुछ लगे हैं पेहरे  छुप छुप कर करनी पड़ती हैं बातें  मौके खोजकर मैसेजमें हाई किया  बहाने बनाये लाखों बेजीस कवर किये  डेट फिक्स और प्लेसीस डिस्कवर किये  छुपते छुपाते पहोंचे मुझतक, गाड़ीमे बैठे  शरारतसे मुस्काई, बालों को अनटाई किया  कुछ घंटे चंद लम्हों से बीत गए  कुछ हम हारे कुछ वो जीत गए  न रुक सकते थे न जाने का मन था  भीगी पलकोंसे मुझको गुडबाय किया  हर मुलाकातमें प्यास बुझती बढ़ती रहती  हमें कम लगता वक़्त वो देर हो रही कहती  जल्द ही लौटने की घडी आ पहुंची उनकी  लास्ट म...

मिलो तो सही

चाँद सितारे भी तोड़ लाएंगे, मिलो तो सही नज़ारे कई और दिखलायेंगे, मिलो तो सही  ना समझना की यार एक मौसम भर के हैं  ज़िन्दगी भर साथ निभाएंगे, मिलो तो सही  कुछ अनकही बातों ने असर गहरा किया  नज़र मिली तो नज़रने असर गहरा किया  जबसे देखा हर नशे से तौबा करली लेकिन  सुरूर मोहब्बत का बताएँगे, मिलो तो सही  कई रोज़ बाद तेरे शहर आना हुआ है  मुद्दतसे थी चाहत अब जाकर बहाना हुआ है  जिन बालों का साया करते थे अक्सर  चोटी उनमे बनाएंगे, मिलो तो सही 

दशहरा

नौ दिन तक संघर्ष चला है  नौ दिन भीषण संग्राम  दशमी विजय की बेला है  जीत जायेंगे राम  जीत जाएंगे राम, और रावण हारेगा  प्रखर किरण भानु, सघन तम को मारेगा  रक्त टपकता खप्परमें असुरों के सिर से  गूंज रहा जयघोष काली का सत्यशिविर से  देवोँने किये जो रास निरंतर नौ रातों तक  माताने सुनी अरदास दुष्ट पर जय पाने तक  महिषासुर का है अंत  माई नवदुर्गा जीतीं  दुखकी अँधेरी रातें  अब जाकर के बीतीं  दहन करो दशानन का  राम के गुण गाओ  फाफड़ा लाओ ढेर सारे  जलेबीयाँ छनवाओ  नवरातों के तप-फल स्वरुप  दशहरा मनाओ  भीतर जो राक्षस बसता  आज फिर से हराओ  आलस्य मिटादो नाश करो तुम अहंकार का  भय का अंत और अंत सारे विकार का  शब्दों से नहीं कर्मों से आगे निकलो  निज विकासको मार्ग दुर्गम चुनलो  हो खुदसे यह संवाद की   किस योग्य बनोगे? कौरव सम चीर हरण या  माधव सम चीर भरोगे  निश्चय करो दृढ, संकल्प बनालो  माँ अम्बा की विजय, रामकी जीत मनालो  पथ लो सतत परिश्रम का  निज स...

और प्यार में क्या पाया

जीवनकी हर मुश्किलका हल, मेरी कवितायेँ और ग़ज़ल पा जाता हूँ जब सुनता हूँ, तेरे कंगन तेरी पायल दर्पणमें देखूं छब तेरी, मैं खुदका नक्श भुला आया एक ग़म, कुछ आंसू, टूटा दिल, बस और प्यारमें क्या पाया चोटीमें गुंथी हुई कलियोंकी मेहक अभी तक याद रही लाली होठोंकी मेरे लबों पर बरसोंके भी बाद रही  काजल आँखोंका मेघ घटाओंसा घिरकर मनपर आया तिरकरभी डूब गए यादोंमें, तब जाके कहीं सुकून आया  जिस शहर, गली, बाज़ारोंमें तेरे क़दमों की आहट हों  मेरे तो चारोंधाम वहीँ काशी, मथुरा, गंगा-तट हों तेरे होठों ने छुआ जिन्हें हर शब्द गीत बनकर आया  तुझपे ही लिखा जो लीखा अगर, तुझको ही गाया जो गाया  छुप छुप के मिलना और मिलनके बाद जुदाई का आलम  दो पल खुशियों के बीच तेरी यादें तेरे जानेका ग़म  मुड़के खोज रही आँखोंने पता मेरा जैसे पाया  झुकती पलकें मुस्काई ऐसे नाम मेरा लब पे आया 

जन्मदिन है

नाचो गाओ धूम मचाओ, जन्मदिन है  ख़ुशी से पागल हो जाओ, जन्मदिन है  नहीं मिलेगा मौका ऐसा या बहाना  दिल के अरमान बतादो ना छुपाना  उलटी गिनती हो भले इसे खूब मनाना  उम्र रही है बढ़ उसे भी भूल जाना  बाल हो गए कम के आओ, जन्मदिन है  स्टाइल के साथ टोपी लगाओ, जन्मदिन है  यारों की दुआ अशीषें पाओ, जन्मदिन है  मज़ाक का मत बुरा लगाओ, जन्मदिन है  पेट हो रहा गोल है उसको ढोल बनाना  ढीला कुरता पहन के उसको क्या छुपाना  पिज़्ज़ा बर्गर फ्रेंच फ्राइज है जमके खाना  आइसक्रीम औ चॉकलेट शेक भी खूब दबाना  बढे वजनसे मत घबराओ, जन्मदिन है  मन मन को टन करते जाओ, जन्मदिन है  खुद पर खुद काफिये मिलाओ, जन्मदिन है  नया नया कुछ लिखते जाओ, जन्मदिन है  बीते कल को कर याद है क्यों आंसू बहाना  जो भा जाए उसको ही गर्लफ्रेंड बनाना  बच्चे हो रहे बड़े अब उनसे क्या शर्माना  बीवी को तो रोज़ नयी स्टोरी सुनाना  कॉलेज वाली को फ़ोन घुमाओ, जन्मदिन है  टेबल टेनिस भी सिख जाओ, जन्मदिन है  भाभी से मेरी कविता छुपाओ, जन्मदिन है  ये ...

जन्मदिवस पर

मिली बोहत बधाइयाँ, शुभकामनायें पायीं  नए पुराने दोस्तों को हमारी याद आयीं  डायटके फरमान दरकिनार कर दिए गए  चॉकलेट और केक खूब खायी खिलायीं  वाट्सएप्प पर एक संदेसा उसका भी आया  पहनके वही कुरता जो हमने था दिलवाया  मेरी एक बिसराई कविता फिरसे जब गाईं  बरसों से बुझी मनमें एक ज्योत जलायीं  पूछा पत्नीसे रोज़ जन्मदिवस मनाएं क्या  युहीं यारों से अपनी तारीफें करवाएं क्या  मन की बातों को समझी और वो मुस्कायीं  पास बैठ नयी कविताकी भूमिका बतायीं 

भारत की बेटी

शाम को ऑफिस से निकलकर घर जाते हुए अक्सर वो सेहमी रहती अख़बारोंवाली वारदातें सच में सोच डरती रहती  दूर का सफर, बस और रिक्शेमें अजनबियों से घिरे हुए कुछ देर तक सहेलियां साथ होती आगे केवल अकेलापन रोज़ किसी न किसी सहेलीको फ़ोन लगा बात करती  घर तक इस डरसे की खाली देख बात न करने लगे बात से बात आगे न बढ़ने लगे ये न समझे की आसान है सार्वजनिक सामान है  आवारा न कहे इशारा न करे पास न आये उंगलिया न छुआए  नज़रें झुका के रखती है देखकर बैठती उठती है गर कोई पसंद भी हो मुस्कुराती नहीं कोई पहचान का हो  तो भी बुलाती नहीं अपने स्टॉप पे उतरकर रिक्शा पकड़ती  औरों से बचने खुदको  सिकोड़ती  घर पहुंचकर माँ बाबा को देख आँखों से ही मुस्कुरा देती चेहरेसे दुपट्टा हटाती छोटे भाई बहनसे दिनके हसीं किस्से सुनती और मनाती की आज़ाद भारतमें  बहनों को बस या रिक्शे में न आना पड़े शाम को ऑफिस से निकलकर

चंद शेर

वो नज़रों के आगे आये यूँ छुपकर की महताब ओझल हुआ बादलों में परदे का हटना, निगाहों का मिलना दिल ही हमारा फंसा मुश्किलों में शाम के हलके उजाले में  छत से कपडे बटोरते हुए  खुले बालों से बिखर कर  मुझ तक जो पहुंचती थी  घने बादलों को देखकर  सोंधी सी वही खुशबु  समां जाती है रूह में और  खुदको उसी छत पर पाता हूँ बिखरी ज़ुल्फ़ोंने करदी बयाँ मुलाक़ात की कहानी  अधरों की शरारतें भी सुनी होठों की ज़ुबानी  नैनों की बदमाशियाँ आँखों से छुपती कैसे  अंगड़ाइयाँ जो करती रहीं सिलवटों से छेड़खानी  कुछ देर और बैठो पास नज़र भर देखलें  इन लम्हों में ही जी लेंगे हम पूरी ज़िंदगानी  बढ़ती ही जाती है जितना भी देखूं तड़प उनके दीदार की जो उठी है दिल को कर दिया बेसबर बस ये न करना था  यूँ हलके से उसका ज़िकर बस ये न करना था  जिस बेखयाली से उनका दीदार करवाया है तूने  पानी को आग से यूँ तर बस ये न करना था छुपालो इन नज़ारोंको परदे के पीछे का राज़ रक्खो  दोस्ती गेहरी ही सही मेहफिल का तो लिहाज़ रक्खो  ज़ज़्बात कितनी ही उफान लगाएं मगर सब्र को थामो  बाज...

शोहरत

कहानीमें कुछ किरदार अब भी बाकी हैं जिंदगी ही से कुछ उधार अब भी बाकी हैं मत समझो मैं शोहरत की ऊंचाइयों पर हूँ  ख्वाबों के कुछ इज़हार अब भी बाकी हैं अपनी ही जान अपने ही हाथों लुटाना है मुझे और भी कई सीढियाँ चढ़के जाना है होते होंगे लोग चाँद सितारों से खुश मुझे फलक से आफ़ताब तोड़ के लाना है सफरमें कुछ मुश्किल दौर अब भी बाकी हैं टूटी सही कुछ हौसले की डोर अब भी बाकी हैं   फैसले कई बार डगमगाए तो हैं  हालात से कुछ गिडगिडाएँ तो हैं  गुरुर करने की गुंजाईश ही कहाँ  अजनबी भी मदद में आये तो हैं वाजोंमें कुछ उड़ान अब भी बाकी हैं  मेरे आगे आसमान अब भी बाकी हैं  वो कहते हैं की सब पीछे छोड़ रहा हूँ  लेकिन मैं अलग कतारमें दौड़ रहा हूँ  उजाले तक पहुँचने की कोशिश में  उँगलियों से कुरेद दीवारें तोड़ रहा हूँ  जड़ों को गहराई में जमाना अब भी बाकी है  खुद को हद से आगे ले जाना अब भी बाकी है 

भगवान श्री कृष्ण को Happy Birthday

हर माँ के मुखसे निकले नाम नन्द के लाला का  माखन चोरी मटकी फोरी नागशीश वो नाचा था  ब्रिजकी धूल सनी जिससे और हुई पावन पवित्र  उस मोहन कृश्न कन्हैयाको जन्मदिवस शुभकारी हो  Add caption प्रेम कथाएं युगो युगों तक गाई जाती हो जिसकी  जिस संग रास खेलने को नारी रूप धरें शिवजी  राधे राधे में सिमटे जो रूकमणीके मनको भाए हों उस गोपीनाथ गोपाला को जन्मदिवस शुभकारी हो चाणूर पूतना कंस हते मधुसूदन कीव मुरारीने  केशी अरिस्ट निर्वाण किये यदुनंदन बांकेबिहारीने अघ शकट व्योमा-वत्सा दुष्टों को नाथने वाले हैं उस दामोदर गिरिधारी को जन्मदिवस शुभकारी हो ब्रम्हा और इन्द्र भी घूम गए जिसकी माया के चक्कर में मथुरा गोकुल या वृन्दावन है प्रेम मिला जिसे हर घर में  सांदीपनि आश्रममें साधा हो जिसको सोलह कलाओं ने  उस घनश्याम कुञ्ज बिहारी को जन्मदिवस शुभकारी हो मित्र अनोखे ऐसे की उनसा ना कोई मित्र हुआ दो लोक सुदामाको कच्चे चावल की भेंट दिया  नर को नारायण करने को पग पग जिसने संभाला था उस अर्जुनसखा चक्रधारी को जन्मदिवस शुभकारी हो शिशुपाल यवन जरासंध सभी जिसके आगे नतमस्तक हों व्यास...

हालात से जंग

अंधेरोंने घेरा जहाँको है ऐसे किरन एक उम्मीदकी ना नज़र है मुझे फिर भी अपनी खुदी का यक़ीं  सूरजको तूफानोंमें ढूंढ लूँगा  है मुमकिनकी हालात ही जीत जाएँ मेरा हर इरादा नाकाम हो भी शोले भले ही बुझ जाएँ आँधियोंमें दीपक मगर मैं जला के रखूँगा नज़दीकियां ही हों दुश्मन जो अपनी मनको तो मत दूर होने ही दीजे हाथों से हाथों का ना मेल हो पर दिलसे गले लगा तो मैं लूँगा हो गए हम तो क़ैदी अपने ही घरमें और घर ही के लोगों से पर्दा हुआ है है देहलीज पर आफतों का बसेरा किवाड़ोंको मेहफ़ूज़ करता रहूँगा है मुझपर ये नेमत की अपनी ही छतके नीचे हूँ नहीं मोहताज़ फिर भी बिलखती भूखोंकी सुनकर सदाएँ उन्हें सहारे की आवाज़ दूँगा जो अपने दर की तलाशों में तन्हा शहरों से गावों को पैदल चले हैं उन अनजान चेहरोंमें मुझसे हों मिलते सारे वो चेहरे पहचान लूँगा रोटी को बांटने निकले जो बाहर उनसे कहूंगा की इज़्ज़त भी बांटे नज़रें झुकें ना हाथ फैले खैरात भी उन लिहाजों से दूँगा आकाओंसे क्या उम्मीद करना कुर्सी ही जिनका है दीनो-इमां  है उसका भरोसा ये जंग भी मैं  उसीके भरोसे पर जीत लूँगा 

ઝાન્ઝવા પાછળની દોટ

લાગણીઓનાં દુકાળમાં પીડાતું હૃદય  બની ગયું છે એકલું, ને  શોધી રહ્યું છે આજ, કે  કાશ આવો તમે, ને લઇ જાઓ દૂર ઘણે  દૂર અંતરિક્ષની પાર, જ્યાં ના રહે કોઈ અવકાશ  કે કોઈ છીનવી શકે મુજ આકાશ  ને વિહરીએ આ મુક્ત ગગનમાં પંખી બની  ભયના હોય કે ના હોય કોઈ લાલચ જ્યાં  કે જીવતી સંવેદનાઓનું ના હોય કોઈ મરઘટ ત્યાં  આવો, આવો ને મીત મારા કે પ્રીતના હો ભણકારાં  ને ઉન્મત્ત બનીને ફરતા સુરજનેય કરવી પડે આંખોં બંદ, ફેલાવો તમારા પ્રેમનો એવો ચળકાટ છે ઘણી જે સાલતી તમારી મુજને ખોટ  પુરી દો, પુરી દો ને આવી વરસો બની વાદળી  ભીંજવો મુજ અસ્તિત્વને છીપાવો દો તૃષા  રોકી દો, રોકી દો મારી ઝાન્ઝવા પાછળની દોટ 

આવીને જો

શબ્દોની રમતજાળથી પર આવીને જો  બની શકે તો સંસારથી પર આવીને જો  ગણ્યા ગણાય ના તેટલા પત્રો લખયાં મેં તુજને  રહી ગયી છે તેમની છાપ જે અફર આવીને જો  કરવા છતાંય પ્રયત્ન બાંધ હૃદય પર બંધાતો નથી  આંસુઓથી છે પલાળ્યા તે રૂમાલ આવીને જો  છે કર્યો બનતો ઉપયોગ રક્તનો, શાહીને સ્થાને  બચી ગયેલ મુજ શ્વેત કંકાલ આવીને જો 

ऐ दोस्त, कुछ याद है?

ऐ दोस्त, कुछ याद है? साथ बीते पल, कुछ याद है? पुरानी तस्वीरोंसे कभी-कभी है झांकता गुज़रा हुआ कल, कुछ याद है? कंचों की छीना झपटी  और बेंत की बढ़ती लम्बाई जीत-हार का लेन-देन और रोज़ की लड़ाई हिसाब में जमा कंचे कितने  कितनी उधारी, कुछ याद है? भाड़ेकी साईकिलके हिस्से चार मिनटों मिनटों की अलग रफ़्तार  आज तेरी कल मेरी मम्मीसे  रुपये का तकाजा बिनती बारबार अंकल जो हमको फ्रीमें ही देते खट्टी-मीठी टॉफ़ी, कुछ याद है? स्कूलके बक्से में लट्टू लेजाना विद्याके पत्तोंको किताबों में सजाना फ्री किलासमें अंताक्षरी गाते बेंचपर तबला और ढोलक बजाना मुर्गा बनाकर पीठपर जो रखते स्केल कितनी गिरायी, कुछ याद है? बचपन बीता, आयी जवानी  नया सर्ग, पुरानी कहानी  नए यार, दौर था नया  तुमहुम कुछ बदले, कुछ ज़िंदगानी  कितनी दोस्ती नयी बनी थी  कितनी खों दीं, कुछ याद है?  पेहली मोहब्बत में दीवाना होना साथ लगाए जिस गली के चक्कर इज़हार का डर, बांटा था कैसे  गम इंकार का भी झेला था अक्सर  चिट्ठियां कितनी किसको मिली थी कितनी लिखी थी, कुछ याद है? दिल का टूटना आँखोंका बहना  कभी ...

મૃગજળ પાછળની દોટ

દોડી રહ્યો છું ક્ષિતિજમાં ભાસતા એક છળની પાછળ  છે જ્યાં સહેરાઓની મેહફીલ એવા એક મૃગજળની પાછળ છે મને તરસ શાની એથી હું અંજાન નથી  છળથી લૂંટી જાય કોઈ એટલોયે બેભાન નથી  પણ રાખવા એહસાસ કે જીવંત છું હજી ચાલ્યો જાઉં છું રાખી નાહક ઉમ્મીદ ને આગળ  કરશે જરૂર અંત મારો સાલતી જે તમારી ખોટ કે ના છોડીશ હું કદી મૃગજળનાં પાછળની દોટ શક્ય બને ને કદાચ મારી યાદ રૂપી કબ્રને  ભીંજવે તમારાં નયનોના જળ નિર્મળ છે જ્યાં સહેરાની મેહફીલ એવા કોઈ મૃગજળની પાછળ દોડી રહ્યો છું ક્ષિતિજમાં ભાસતા એક છળની પાછળ 

खुशबुने कहा

हवामें उड़ती हुई एक खुशबु  कुछ कह गयी मुझे, अफसाना सुनाया न कोई, न बात की कोई, फिरभी छेड़कर दिलके तार संगीत सुनाया कोई भर गई है साँसोंमें या रूहमें समां गयी वो  ज़मीं पर हो आसमां वैसे छा गयी वो थी न कोई ज़रूरत  न अरमां उसका  पर यूँ लगा की बना है सारा जहाँ उसका हर शय में वो नज़र आती है हर साँसमें वो गाती है, की आओ मेरे प्रिय और  ले जाओ अपने संग दूर सबसे दूर जहां  हो जहाँ का अंत रहें वहां सिर्फ मैं और तुम  सारे रिश्ते, सारी तमन्नाएँ  हो जाएँ जहां गुम तुम बनो धड़कन मेरी  मैं सांस हूँ तुम्हारी सुनने की उसकी बातें  चाह रह गयी मुझे  हवामें उड़ती हुई खुशबु  यही कह गयी मुझे 

पथ्थरोंकी भीड़

पत्थरोंकी भीडमें फंसा आदमी जो चाहकरभी निकल पाता नहीं घिरा है कश्मकशमें ऐसी की हर सांस उसकी मुश्किल हुई आह उसकी सुनके कोई सदा देता नहीं छोड़ा है उसे सबने जैसे बेजान पत्थर कोई काश! काश कोई जाए और समझाए उसे ज़्हिंदगीके मायने सही, कोई बतलाये उसे डर है वर्ना, वो बच नहीं पायेगा घुट घुट कर बहुत, वहीँ मर जायेगा जाओ सम्भालो उस पागल दीवाने को छोड़कर चला है वो सारे ज़माने को की फ़र्ज़ है जिसका बाँटना ज़िन्दगी वो इस हालमें खुद को जिला पाता नहीं चला बदलने ज़मानेको पर खुद ही संभल पाता नहीं पथ्थरोंकी भीड़में फंसा आदमी   जो चाहकरभी निकल पाता नहीं

हो सकता है

प्यार करलो जी भरके आज ही,  कल बदल जाएँ हम-तुम हो सकता है ज़िन्दगी पकड़लो दोनों हाथोंसे,  वक़्त इस पल में ठहर जाये हो सकता है जो बीत चूका वो ख़यालों में अब भी ज़िंदा है  पहली मुलाक़ात और सफ़ेद जोड़ेमें सजी तुम  बंद होते ही आँखें देख लेता हूँ, पलंग पर बैठे  और गुलाब की खुशबु से महकती हुई तुम यादों से मेरी तुम चली जाओ कभी ना होगा  मैं खुद ही को भूल जाऊँ हो सकता है  दो थे हुए एक, जिंदगीके सफरमें हम  तस्वीरोंको नए रंग मिले जब तुमसे मिले हम  फुलवारीमें खिले नए फूल, तुम्हारी मुस्कान लिये मकान घर बन गए, जब तुमसे मिले हम  बैठ फुर्सतमें टटोलें पुराने किस्से, और हम उन्हींमें लौट जाएँ हो सकता है   बरसों की कश्मकशने बदल दिया है चेहरे को रंग रूप भी जिंदगीके साथ घट-बढ़ गए हैं  जो लहराते थे खुल के हवाओं में, घटाओं से  तुम्हारी साडीके नीचे जुड़े में बंध गए हैं  सुबह सुबह उन भीने केशों को तुम खोलो  और सावन आ जाये हो सकता है मैं और भी बदलूंगा आने वाले वक़्त में तुम भी शायद ऐसी नहीं रहोगी जिम्मेदारियां घेरेंगी और भी हमको बच्चोंकी फरम...

મૂર્ખની ચાહ

છે કેવો મૂર્ખ જે કરે છે એવી ચાહ  ઉભો ભેંકાર રણમાં ને માંગે વૃક્ષની છાંહ માનવતાથી દૂર એવી એક વસાહતમાં જ્યાંના હિંસક પશુઓ ખપાવે ખુદને માણસમાં  છે બધા અંધ અને મૂંગા બેહરા ને લૂલા-લંગડા  ને ખુદના મનોરંજનને ખાતર નાખે બીજાને આફતમાં  હતું ભોળું આ નાજુક દિલ જે  પાષાણને મનાવવા ગયું  પાણી નાખી થોર પર જે અંબા વાવવા ગયું  કરી સૌની સેવા ખુશ તે બહુ થયું ને માંગી બેઠું એ મૂર્ખ નાનીશી સરાહ મરઘાટોનાં વિશ્વમાં એક નાનો જીવ  ચૂમે છે સર્પને ઈચ્છે પ્રેમ-પનાહ છે કેવો મૂર્ખ જે કરે છે એવી ચાહ 

छिपकली गुरु

दीवारों पे सरपट भागती घूमती हो  डराती हो उनको जो सब को डराएं  कैसा हुनर है हमें भी सिखाओ  छिपकली हमारी गुरु बन जाओ  बचपनसे अम्माकी चीखोंको सुनकर वो पापाका हाथोंमें झाड़ू उठाना  दीवारों, कोनों, किवाड़ों के पीछे  तुम्हें ढूंढकर, उसे जमके चलाना कई बार यूँ पूंछ को छोड़कर तुम जाती कहाँ हो यह तो बताओ ... ...छिपकली हमारी गुरु बन ही जाओ  राजे-नवाबों ने क्या डाले ही होंगे  वो घेरे तुम्हें फांसने को लगाते  इस और में, उस और भाई और  पापा ही अक्सर आगे से आते  असंभव घडीमें भी कोशिश की हिम्मत  लाती कहाँ से हो ये बतलाओ ... ...छिपकली हमारी गुरु बन ही जाओ 

कभी ना थे.....

हालात इतने बदतर कभी ना थे  दिलों पे पत्थर कभी ना थे  माना की आप दोस्त नहीं हमारे दुश्मन भी मगर कभी ना थे  लाख छुपाएं वोह हाले दिल हमसे  अनजान मन से हम कभी ना थे ग़म का ही रिश्ता बचा था आखिर  ख़ुशी के यार हम कभी ना थे  कौन हौले से छू गया मन को  नाज़ुक अंदाज़ उनके कभी ना थे चीर ही देते हैं दिल बेरहमीसे  बेवजह मेहरबान वोह कभी ना थे  नज़रों की बातों पे भरोसा करते हैं  शब्दों के जानकार तो कभी ना थे  बिन कहे अफसानों को समझ लेते हैं  लफ़्ज़ों के मोहताज कभी ना थे  सामने तो अक्सर आते नहीं गायब सरकार मगर कभी ना थे याद ना करें शायद वोह हमें  भुलने के हक़दार मगर कभी ना थे 

સાચો મિત્ર

જેના નામ નું બહાનું ઘરે આપીને ગર્લફ્રેન્ડ સાથે પિક્ચર જોવા જઇયે એ સાચો મિત્ર કહેવાય  તમારી પાર્ટી માં પૈસા ખૂટે અને જે બધાને આઈસ્ક્રીમ ખવડાવે એ સાચો મિત્ર કહેવાય  છોકરી છોડી ગયી એના દુઃખ માં દસ કિલોમીટર સાથે ચાલીને ઘરે આવે એ સાચો મિત્ર કહેવાય  આવતીકાલે પરીક્ષા હોય પણ રાત્રે તમારા ઘરે બેસીને  ગપ્પા મારે એ સાચો મિત્ર કહેવાય  તમને ગમતી છોકરી ને ભાભી કહીને પણ લાઈનો મારે એ સાચો મિત્ર કહેવાય  મટન પુલાવ માં મટન તમને આપી દે અને પોતે કેવળ ભાત ખાય એ સાચો મિત્ર કહેવાય  ઝગડો તમારો હોય પણ આગળ વધીને જે મુક્કા મારે અને ખાય એ સાચો મિત્ર કહેવાય  ઝૂઠાણા પણ સાચા માને અને કદી સાચા માં પણ ડાઉટ કરે એ સાચો મિત્ર કહેવાય  રિઝલ્ટ ખરાબ તમારું હોય પણ દિવસ જેનો ખરાબ જાય એ સાચો મિત્ર કહેવાય  ખોટા રસ્તે જતા જોઈને ગુસ્સે થાય અને મમ્મી ને કહે એ સાચો મિત્ર કહેવાય  જેના જોક્સ પર હસતા હસતા રસ્તે બેસી જવાય એ સાચો મિત્ર કહેવાય  અને જીવન થી જોડાઈને જે જીવન ને આનંદિત કરે એ સાચો મિત્ર કહેવાય