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चंद शेर

वो नज़रों के आगे आये यूँ छुपकर
की महताब ओझल हुआ बादलों में
परदे का हटना, निगाहों का मिलना
दिल ही हमारा फंसा मुश्किलों में

शाम के हलके उजाले में 
छत से कपडे बटोरते हुए 
खुले बालों से बिखर कर 
मुझ तक जो पहुंचती थी 
घने बादलों को देखकर 
सोंधी सी वही खुशबु 
समां जाती है रूह में और 
खुदको उसी छत पर पाता हूँ

बिखरी ज़ुल्फ़ोंने करदी बयाँ मुलाक़ात की कहानी 
अधरों की शरारतें भी सुनी होठों की ज़ुबानी 
नैनों की बदमाशियाँ आँखों से छुपती कैसे 
अंगड़ाइयाँ जो करती रहीं सिलवटों से छेड़खानी 
कुछ देर और बैठो पास नज़र भर देखलें 
इन लम्हों में ही जी लेंगे हम पूरी ज़िंदगानी 

बढ़ती ही जाती है जितना भी देखूं
तड़प उनके दीदार की जो उठी है

दिल को कर दिया बेसबर बस ये न करना था 
यूँ हलके से उसका ज़िकर बस ये न करना था 
जिस बेखयाली से उनका दीदार करवाया है तूने 
पानी को आग से यूँ तर बस ये न करना था

छुपालो इन नज़ारोंको परदे के पीछे का राज़ रक्खो 
दोस्ती गेहरी ही सही मेहफिल का तो लिहाज़ रक्खो 
ज़ज़्बात कितनी ही उफान लगाएं मगर सब्र को थामो 
बाजारमें गर आना भी पड़े नुमाइशोंसे ऐतराज़ रक्खो 

शाम खामोश थी ठहरे पानी की तरह 
तेरा ज़िक्र हुआ और भँवरें उठने लगी 
हम तो भूल ही चुके थे दिल के दर्द 
लबों ने नाम छुआ और टीस उठने लगी 
महक गुलाबकी अब भी थी बालोंमें 
आँखों का काजल होठों की लाली भी 
अचानक जो सामने अजनबी से आ बैठे 
बरसोंकी दबी फिरसे कसक उठने लगी 

टूट जाता हूँ शब्द खोजते
वाक्य रचते, भाव बुनते
भाषा अपूर्ण सी लगती है 
थक जाती कलम अक्षर लिखकर 
तब अंतर्मनको चीर वेदना 
फूट फूट बहने लगती
और कविता लेती है जनम
शब्द, वाक्य, मुक्तक बनकर

गर आसां होती तो शायरी की कदर भी करते 
रूह झुलस जाती है इक इक आशार कहने में 

सहारा ले रहा हूँ रौशनी तक पहुंचने की कोशिशमें 
बड़े हैं बडप्पनसे क्षमा कर देंगे इसी उम्मीद में 

शर्ट के छोर को खीँच, भीगी आँखों से जो पूछे थे 
जवाब उन सवालों के अब भी होठों पर ठेहरे हैं 
मेहंदी लगे हाथों से मेरा हाथ थामे जो छेड़े थे 
सारे दर्द मुस्कुराहटों में छिपे, तेरी गली में ठेहरे हैं 
तुझे दुल्हन के जोड़े में देख, मैं भले ही लौट गया 
अरमान मेरी मोहब्बत के तेरे दरवाजे ठेहरे हैं 

झुकती नज़रें अजब कमाल करती हैं 
चुप रहकर भी बोहत सवाल करती हैं

सिंह कहाँ सिमित रहते मजलिस, सदन, सभाओं में 
गीदड़ ही मिलते भीड़ लगाए मजमो और जमावो में 

ये गीत, ये गज़लें, बस तुम्हारे लिए 
मेरे शेर, मेरी नज़में, बस तुम्हारे लिए 
हाल-ए-दिल जान लोगे जब पढोगे 
मेरे खत ये नग्में, बस तुम्हारे लिए 

जन्नत ना मिले ना सही 
ये दोस्त साथ रहें बस 
दोज़कमें क़यामत ढा देंगे 

शैतान तौबा, रश्क़ फ़रिश्तोंको 
हूरें खुद पेश हो जाएँगी 
शरारतें ऐसी ज़िंदादिल करेंगे 

शब्दों से बढ़कर भाव को जाना करो 
छोटी छोटी बातों का बुरा ना माना करो 
गर लगा गलत कुछ, बता देते मुझे 
बातोंमें मेरी छुपे अर्थ ना जाना करो 

रंग ज़िन्दगी में घुल गए, जब से तुम्हें देखा 
श्रृंगार कविताको मिल गए, जब से तुम्हें देखा 
अन्य क्या अर्पित करूँ, यौवन को, तेरे रूप को 
भाव जो गीत में ढल गए, जब से तुम्हें देखा 

कभी हम कभी तुम 
अभी मिले अभी गुम 
नियत है, खोज ही लेंगे 
चाहे कितना ही छिपो तुम 
फागुन रेह जाएगा अधूरा 
रंग तुमको जो लगे ना मेरा 
ये प्रेम, अनुराग का त्यौहार 
सच, प्यार के रंग हज़ार 

તારા રૂપ નો એવો વરસાદ થાય છે રોજ 
મારા સપનાં ય ભીના ભીના થયી ચૂક્યાં 

त्याग की बातें ना करो हमसे
ना बताओ गुण निरासक्तिके 
सुख जीवनका खोजते तुझमे
तेरी नजरोंसे खुलेंगे द्वार मुक्तिके 

ज़िन्दगीके सफरको मनचाहा अंजाम देना है 
कलम से छेनी और हथोड़ी का काम लेना है 

और किससे पूछें हाल-ए-दिल तेरा 
निगाहें सब राज़ खोल बैठी हैं 
आज फिर तुमने सँवारी है ज़ुल्फ़ें 
नज़रें फिर मेरे इंतज़ारमें बैठी हैं 

मिटटी बिकते सोनेके मोल, हमने देखा 
खुल्लमखुल्ला ये पोलमपोल, हमने देखा 
ठीक था जब खुश थे गुमनामीसे अपनी 
बाज़ारका भद्दा है तोलमोल, हमने देखा 

जिन कश्तियोंको कीनारोंका खौफ होता है 
छुपा लेती है मझधार आंचलका सहारा देकर  

तूफानों से उबरे मगर साहिल पर डूब गये 
ज़माना हँसता है बड़े जोरसे दिलासा देकर 

ज़मानेने जो भी बतायीं उनकी बुराइयाँ, सच है 
दिखावटी है मोहब्बत, इश्क़की गहराइयाँ, सच है 
मेरे चाहने वालों की हिदायतें लाज़मी तो हैं मगर 
दिल को भा गयी हैं उनसे जुडी रुस्वाइयाँ, सच है 

जाने कौनसा तिलिस्म छुपा है तस्वीरमें तेरी
खामोश होकर भी बातें मुझसे खूब करती हैं
रोज़ करता हूँ मिन्नतें, मगर पलकें खुलती नहीं 
छेड़ती मुझको शरारतसे या ज़मानेसे डरती हैं 

तेरे जुड़े पर सजे गजरेके धागेमें 
कई गीत पिरोकर आया हूँ 
प्रेम लिखा है उनमे और दर्द भी 
इंतज़ार है मुलाकात का, तपिश भी 
ज़रा एहतियात से संवारना बालोंको 
छंद टूटकर ज़ुल्फ़ों में ना बस जाएँ 
फिर मेरे शेर महकेंगे तुझसे 
और जान जायेंगे लोग राज़ अपने 

एक किताब सा है दिल, एहसास शब्दोंमें पिरोये हुए 
गर पढ़ो ना तब भी, बस पन्ने पलट लिया करो 
तुम्हारी उँगलियों की खुशबू उनमे बस जाए ताकि 
मेरे लफ्ज़ भी किसी ग़ज़लमें बदल जाएँ शायद 

कोई तो अपनी प्यास लिए आये कभी इधर 
एक दरिया बरसोंसे तनहा बहे जाय है 

कोई तो पढ़े इसको, कोई दाद दे कभी 
एक दीवाना बरसोंसे गुमनाम लिखे जाय है 

बरसोंसे कलम लिखती रही, ज़ुबाँ गाती रही गीत कई 
तू ना हो जिसमे ऐसा कभी कोई शेर मैंने कहा नहीं 

लूटने के बाद हिफाज़त के सलीके आ गए आखिर 
गज़ब इम्तेहान और गज़ब है सबक तेरा, ज़िन्दगी 

सारी सियासतें, सारे फसाद, सब भेद को भूलकर 
हर हिन्दुस्तानिको वतनका वफादार होना चाहिये 

ज़रूरी नहीं की भुलाया ही जाए हर ग़म 
ये जाम तो बहाना है उसे फिर याद करनेका 

नए ज़ख्म रोज़ तलाश लेता है दिल
किसी मरहम पे आ गया है, शायद 

अपनी तन्हाई पर भी कोई इख़्तियार ना रहा 
ज़िन्दगी तेरी ज़िम्मेदारियोंने यूँ घेरा है हमें 

कुछ देर खुद ही से रूठ लूँ, इजाज़त हो अगर 
खामोश बैठ लूँ कभी जो सवाल ख़त्म हों 

इश्क़की एक हसीं शाम तुम हो 
ज़िंदगीका नया आयाम तुम हो 
जिसे रहा खोजता ताउम्र मुसाफिर
मोहब्बतका वो आखरी मुकाम तुम हो 

सुब्हा सुब्हा चनेके झाड़ चढ़ा दिया 
यारों ने फ़र्ज़ अपना निभा दिया 
पढ़ा एक भी नज़्मको नहीं मेरी 
बस उठते ही मुझे ग़ालिब बता दिया 

ऐब कोई भी हो, भूलने नहीं देते 
ताने दोस्तोंके मजाकमें छुपे हुए 

कॉलेजसे लेकर आज तक, दे गाली बुलाते हैं 
सारे कारनामे पहले बीवीको, अब बच्चोंको सुनाते हैं 
जान देने को तैयार मगर कोई काम दो तो भाग जाते हैं 
बड़े होनेको तैयार हूँ लेकिन दोस्त खीँच बचपनमे ले जाते हैं

ये केहते केहते रुक जाने की अदा 
जान लेके रहेगी ये आंखमिचौली 

बात मतलबकी है, पसंद आयी है बोहत 
दिल फेंक दीवानोको नया बहाना मिल गया

मीलोंका सफर लगातार बरसों तक चलता रहा 
बूंदों को कैसा जूनून, दरियासे ये कैसी आस है

वो पूछते हैं की ग़ालिब कौन है 
कोई बतलाये हमें की हम बतलायें क्या 
कुछ वक़्त बैठो, पढ़ो, सुनो; खुद जान लोगे 
अब हम खुद अपना तार्रुफ़ करवाएं क्या 

साथ छोड़कर ना जा यूँ बीच सफरमे 
अभी तो कई दरिया मिलके पार करने हैं
पाँव भीगो कर लौट आ गँगा किनारेसे 
मेरे साथ तुझे कई और गुनाह करने हैं 

वो बचपन था की बड़े होने की जल्दी थी हमें 
अब उम्र तमाम माज़िमे लौटने की कोशिश है 

लम्बी है फेहरिश्त गुनाहोंकी मेरे 
सारी नाराज़गी जायज़ है तेरी 
मलाल क्यों छोड़ना यूँ जाते हुए 
सजा ही सही सुनाने के लिए आ

शाम, बारिश, सर्द मौसम और शायरी 
आओ, ऐसे में कहीं, तुम-हम मिलते हैं 

भीगे मौसममें मचलने लगे दिल तो चलता है 
यूँ बूँदें गिरते ही जलने लगे दिल तो चलता है 
हिरनीके मानिंद दौड़ती हो कपडे समेटने जब  
देखनेवालोंका फिसलने लगे दिल तो चलता है 

हुनर होगा शायरीमे तो चाहनेवाले भी मिल जाएँगे 
अपना काम है लिखना, तो लिखते हैं, लिखे जाएँगे 

ऐलाने तकब्बुर नहीं, है फलसफा शायरका 
दौलत ना शोहरत सही, है हिकमत तो हासिल

बार बार लटों को यूँ चहरेसे ना हटाया करो 
मृगनी जैसी आंखोंमे काजल ना लगाया करो 
बूत बनकर तुम्हें देखते रहें, हैरत क्या इसमें 
मुस्कुराकर तुम यूँ मेरे सामने ना आया करो 

बाप, माँ, बच्चोंसे सारोकार बेच देंगे ये 
सही कीमत लगाओ सरकार बेच देंगे ये 
सब बातें बेहलाने-फुसलाने को सुना रहे 
आए बातोंमे तो तुम्हें सपरिवार बेच देंगे ये 

रोक लो दिल की बातों को दिलमें 
कोई सवाल ना करो आजकी रात
इन बातोंमें रहे तो सूरज उग जायेगा 
नींद नहीं आएगी हमें आजकी रात

अपने मनका द्वन्द, दिखाऊं किसे? 
बताना चाहूँ तो ये बात बताऊँ किसे? 
ये मुझे घेरे जो बैठे हैं सभी अपने हैं 
अपनोंसे मिले ग़म मैं सुनाऊँ किसे?

ज़िंदगीके बस इतने ही फ़साने रेह गए हैं 
यारोंसे बात करनेको ये बहाने रेह गए हैं 
जाने कितने सफर अपने घर बैठ कर लिए 
जो बाकी हैं उनके प्लान बनाने रेह गए हैं 

वादा था की बैठेंगे मिलकर कभी साथ 
होंगी तब भूली बिसरि बोहत सारी बात 
इसी इन्तेज़ारमें आँखें खुली रह गयीं मेरी 
आएंगे वो मेरे घर मेरे गुज़र जाने के बाद 

शुन्य हूँ, तुम तक गति है 
मेरी कलाकी ये नियति है 
आड़ी-तिरछीं रेखाएं खेंचू जब भी 
छबि केवल तुम्हारी बनती है 

हर रात सुबह काश ऐसी पाये, खुलें आँखें तू नज़र आये 
गलियोंकी भटकन छोड़ दें, दीवानोको जो तू मिल जाये 

जाने क्या पाते हैं लोग, शराबकी बोतल में 
की ऐसे डूब जाते हैं लोग, शराबकी बोतल में 
सुब्हा-शाम, ख़ुशी या ग़म एक बहाना भर है 
घर-परिवार भूल जाते हैं लोग, शराबकी बोतल में 

कितनी खुदगर्ज़ मोहब्बत है मेरी 
चाहती है को वो यूँही इंतज़ार करे 
तड़पाना भी है, रुलाना भी है मुझे 
फिर ये भी की बेइंतहा वो प्यार करे 

दिन बोहत हो गये नयी खबर उनकी नहीं आयी 
एहसान होगा जो कोई खैरियत ही सुना दे आकर 
कुछ पुरानी तस्वीरोंसे बेहलाये हुए हैं दिल को 
कितनी प्रतीक्षा, क्या बेचैनी, उन्हें भी बता दे जाकर

बोहत सोचते हैं की ना करें अब इश्क़ किसीसे 
सामने आते ही लेकिन हो जाता है प्यार उन्हींसे

हम ही नहीं थे बीमार अकेले, 
उनके मर्ज़ के मारे बोहत हैं 
दो पल तन्हाईके मिल जाते तो बात होती 
इन्तेज़ारमे ये सभी बेचारे बोहत हैं 

टीस तुझसे जुदाई की सीने में छुपाये बैठे हैं 
रंग, छंद, शब्दोंसे तेरी तस्वीर बनाये बैठे हैं 
छबसे निकल मेरे आगोशमें आ जाओगे कभी 
दिलको इसी उम्मीदसे अब भी लगाये बैठे हैं 

मैंने अपनी तन्हाई को सुनाये कई नग्मे, गज़लें और गीत 
उसके पास सिर्फ गुमनामी थी, मुझे तोहफेमे वो देती रही

अजनबी शहर अलविदा, कल शायद फिर मिलें 
बड़े प्यारसे रक्खा इतने दिन हमें, अब, घर चलें 

ओ लहरों पर सवार, दूर देसके मुसाफिर 
भूल ना जाना जिन्हें पीछे छोड़ जा रहे हो 
बारिश आये, धुप खिले, मौसम या बदले हवा
जान लेना की तुम बोहत याद आ रहे हो 

बात जरुरी है केहना तुझसे, सुनायें कैसे 
शोर धड़कनें कर रहीं बोहत, दबायें कैसे 
शब्द मुट्ठी भर, प्यार अथाह सागर जितना 
कैसे व्यक्त करें तुमको, इश्क़ जतायें कैसे 

ये हम जो दीवाने हुए बैठे हैं, बस इक नज़र देखते हैं 
होंगे कौन जाने खुशनसीब, जो उन्हें जी भर देखते हैं 
हसद आईने पर भी होने लगी है दिलको मेरे अब तो 
देखता है सँवरते उन्हें वो, जादूका अपने असर देखते हैं 

कल जैसा था कर्म तुम्हारा, आज फल वैसा ही देगा 
तुम लेने चलोगे दोस्तकी अपने, दोस्त तुम्हारी लेगा 

उन्होंने तो बस यूँही पूछा हाल अपना 
हम बीमार हुए फिर ठीक भी हो गए 

किस मोड़ आ गया ज़िंदगीका सफर, हादसा हुआ कैसे?
हम भूल भी सकते हैं तुमको कभी, ये यकीं हुआ कैसे? 

रात ढली तो थके मुसाफिर घर लौट आये 
हसीन आँखें मुस्कायीं, होंठ खिलखिलाये 

अब, मैं ग़मकी तिजारत करने लगा 
अब, मेरे कलामके दीवाने हैं बोहत

तू सितारा है तो जगमगा आसमाँ से 
जो है दरिया तो अपनी रवानीसे बेह 
ज़माना है रुका ये इन्तेज़ारमें कबसे 
उठा कलम तू अपनी कहानीको केह 

इक लेहर के भरोसे कूद गयी नाँव दरियामे 
इक नज़र पर जमाये रक्खे पाँव उसने भी 
मुझे भरोसा तो था नाकामयाबी का अपनी
एक यक़ीन पर लगाए रक्खे दांव हमने भी 

प्रभाकर की किरणे करातीं स्मरण ये 
उठो और चलो, इक नया दिन है आगे 
काँधे पे हल या हो कलम उंगलियोंमे 
यूँ चलाओ की सोये सभी भाग्य जागे

घनी हो चुकी अब रात बोहत, चलो घर जाएँ हम 
बेमतलब भटकते रहे फिर, थोड़ा सुधर जाएँ हम

तेरा दामन छोड़ अब मैं किधर जाऊँ 
देखके जी रहा तुझे, कहे तो मर जाऊँ 
सब्र बोहत है मगर ये तो ज़ुल्म ना कर 
छोड़ दे उम्मीद की अब मैं सुधर जाऊँ 

गणित का पेचीदा कोई सवाल हो जैसे 
रोज़ सुलझाता हूँ, रोज़ उलझ जाता हूँ 

आ भी जा आंखोंमे नींद, की सो जाएँ हम अब 
तू ही दिखादे शायद, ख्वाब उनसे मुलाक़ात का 

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