दीवारों पे सरपट भागती घूमती हो
डराती हो उनको जो सब को डराएं
कैसा हुनर है हमें भी सिखाओ
छिपकली हमारी गुरु बन जाओ
बचपनसे अम्माकी चीखोंको सुनकर
वो पापाका हाथोंमें झाड़ू उठाना
दीवारों, कोनों, किवाड़ों के पीछे
तुम्हें ढूंढकर, उसे जमके चलाना
कई बार यूँ पूंछ को छोड़कर तुम
जाती कहाँ हो यह तो बताओ ...
...छिपकली हमारी गुरु बन ही जाओ
राजे-नवाबों ने क्या डाले ही होंगे
वो घेरे तुम्हें फांसने को लगाते
इस और में, उस और भाई और
पापा ही अक्सर आगे से आते
असंभव घडीमें भी कोशिश की हिम्मत
लाती कहाँ से हो ये बतलाओ ...
...छिपकली हमारी गुरु बन ही जाओ
Very unique concept 👍👍👍
ReplyDeleteYeah. Thanks
DeleteChhipkali pe poem pahli Baar dhekhi hai sumthing defrent.....
ReplyDeleteThanks
Deleteछिपकली से तो मैं भी डरता हूँ । मगर आपकी इस पोस्ट पर कहना पढेगा। वाह क्या बात है
ReplyDeleteThanks
DeleteBravo👍
ReplyDelete😊
ReplyDeleteDard tab nahi hota jab dost ku6 karta hay.
ReplyDeleteDard tab hota hay jab dost bahot achha karta hay.
Lage raho a6a karte raho. Or ham jese jo lokdown me sirf makhi marte hay. Use ku6 sikhate raho.
Bas doston ke dard ka hi asar hai agar kuchh achcha likh liya ho to...
Deleteदोस्त कभी दर्द नहीं देते।
DeleteEk kamina dost
ReplyDeleteHar ek dost kamina hota hai :) :) :)
Delete👌👍
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