खामोश समंदर सा इश्क़ है मेरा
गहराइयों का पता लगा न सकोगे
कितने ही बहाने बनालो खुदसे
दिलसे मुझे भुला न सकोगे
जलता दिया नहीं सूरज की रौशनी सा है
आंधियां कितनी भी हो वजूद मिटता नहीं
गर जला भी दे ज़माना तो और निखर जायेगा
ज़र-ऐ-इश्क़ को अंगारों से बुझा न सकोगे
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