मेरे भीतर चलता रेहता
युद्ध जो लम्बे अरसे से
रोज़ हार कर लड़ने का
रोज़ जुटाता साहस हूँ
काल है बसता माथे में
जो नाशकी ओर धकेल रहा
कड़वाहट भर सीने में
मन में ज़हर उड़ेल रहा
गलत शब्द गलत बातें
चाहे जितनी कोशिश कर लूँ
मुझसे होकर रहती हैं
ना जाने किस अंत की ओर
मेरा जीवन दौड़ रहा
वैसे तो सब कुछ है मिला
पर जैसे कुछ भी मिला नहीं
खुदसे ही नाराज़ी है
औरों से कोई गिला नहीं
कहाँ से आया है मुझमे
या पहले ही बसा हुआ
ये नफरत का ज्वाला जाने
कब से अंदर जला हुआ
ना कोई काम ही होता है
ना संतुष्टि मिलती है
सुबह से लेकर राततक
बस वक़्त काटता रहता हूँ
माँ बाप दुखी, दुखी पत्नी
बेटे बेटी भी सुखी नहीं
परिवार है ऐसे साथ साथ
पर सम्मान ना पाता हूँ
दोस्त यार जो भी थे मिले
ज्यादातर सब छूट गए
जो बचे रहे या नाम के हैं
या मतलब देखकर रुठ गए
सबको खुश करते करते
अब सबसे गुस्सा रहता हूँ
अपने मन को बहलाने के
ज़रिये खोजता रहता हूँ
ये आलस कैसे जायेगा
क्या कुछ हासिल कर पाउँगा
कुछ दिन ही सही बस एक बार
क्या ऐसे भी जी पाउँगा
दिन और रात काम करूँ
परिवार को भी सुख दे पाऊँ
माँ बाप और बीवी भी हँसे
बच्चों की मुरादें भर पाऊँ
जो ऐसा ना हो तो वापस ले लो
जीवन का है जो मज़ाक किया
छीन लो मुझसे सब कुछ वो
जो सुख समझकर मुझे दिया
या उलटा घुमा दो समय कांटा
फिर भेज दो मुझको बचपनमे
शायद अपनी गलतियों से
इस बार छुटकारा ले पाऊँ
बचपन से ही शुरू करूँ
नया जीवन, नया वर्तन
पर ऐसा भी होगा नहीं
यहीं पड़े रहना है
अपने ही बनाये कीचड़मे
खुद ही सड़े रेहना है
क्यों मुझसे मिलवाया उस लड़कीको
जो मेरे साथ बंधी बैठी
ऐसे तो क्या कर्म किये थे
जो मेरे साथ फांसी बैठी है
और ये बच्चे बच्चियाँ
इनपर तो दया करते
कोई अच्छा सा घर देख
उनको तो वहां भेज देते
मैंने कुछ भी किया न हासिल
अब जाने क्या कर पाउँगा
देखूंगा ख्वाब बड़े बड़े
और देखते देखते सो जाऊंगा
हिम्मत दी ना मेहनत मुझको
कोई खास हुनर भी दिया नहीं
न चरित्र न स्वभाव
एक भी गुण मिला नहीं
बेवजह चिल्लाना और खीजना
मेरा नियमित लक्षण है
या तो दो परिवर्तन मुझमे
या मेरा ही नाश करो
अगर वो भी नहीं करते
तो तुम ईश्वर नहीं लगते
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