लाल कौशल्या के लौटकर आएं हैं
जानकी के पति आज घर आए हैं
है अँधेरा घना सारा छंट जायेगा
दीप खुशियों उम्मीदों के प्रगटाए हैं
घर से निकले थे युवराज पद छोड़कर
संग लखन जानकी के अवध छोड़कर
कैसी कैसी परीक्षाएं जीते हैं तब
वर्ष चौदह में भगवान बन पाए हैं
धूल घर और मन की झटक दी गयी
नए लीपन दीवारों पे लगवाए हैं
संकटों से घिरे इस कठिन दौरमें
नयी आशा सभी के लिये लाए हैं
नए वस्त्रों, नए सारे श्रृंगार में
रौशनी झिलमिलाती है त्यौहार में
मिठाई, दीये और रँगोलियाँ
खूब खाये, जलाये, बनवाये हैं
फुलझड़ी हैं चमकती अनारों के संग
चकरी भी तो पटाखों के संग आयी हैं
रस्सियां जल रहीं, सांप फुंफकारे हैं
आतिशें सब हवाई चलवाये हैं
ये दुआ है हमारी की बरसें बोहत
रौनकें और ख़ुशियाँ तुम्हारे लिए
जो भी तुमसे जुड़ा हो उसे भी मिलें
कामनाओंके फल शुभ जो भिजवाए हैं
दिन दीवाली का आता नहीं रोज़ है
रोज़ मिलते नहीं दोस्त यारों से अब
दूरियां तो ज़माने की ताकीद हैं
मन से मन को गले आज मिलवाये हैं
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