इक मुलाकात को हर दिन तरसते रहे
बूंदें न गिरी हम पर बादल बरसते रहे
नज़रें दर्पण बनी बैठी थी इंतज़ार में
वो आईने को देख सजते संवरते रहे
लोगों ने कहा सब आँखों का छलावा है
मोहब्बत होगी तुमको उनका दिखावा है
वो पथरीले किनारे हम समंदर की लहरें
टकराकर उनसे दिल टूटते बिखरते रहे
पास आकर भी पास आये नहीं
दर्द थे बहुत हमने जताये नहीं
तकलीफसे उनके हाथोंको बचाने को
खुद ही खोद कब्र खुद ही उतरते रहे
भूल जाने का फैसला फिर किया हमने
जा आखरी अलविदा कर दिया हमने
ज़िक्र अब तेरा क़यामत के रोज़ होगा
रोज़ भले गलियोंसे तेरी होकर गुज़रते रहे
चालाकी उनकी उन्हीको महंगी पड़ी
सादगी से हम तो ज़हर भी पीते रहे
रोने से कहाँ लौटेंगे लम्हें जो बीत गए
था वक़्त कभी तेरी यादों में जीते रहे
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