सोच की दीवारें ख़यालों के पेहरे हैं
कठिनाइयाँ तसव्वुरमें बेवजह ठेहरे हैं
ख्वाब देखनेमें गँवा दिए जो मौके
नज़र आते नहीं ज़ख्म उनके गेहरे हैं
हालात देखकर मेलजोल बदल लेते हैं
दोस्त रिश्तेदार सब के कई चेहरे हैं
थोड़ा मतलबी हो जाएँ ये भी जरुरी है
सादगीको कहाँ कामयाबी के सेहरे हैं
हुनर ही नहीं ढिंढोरा भी चाहिए
भीड़ ज़्यादा और फ़ैसलासाज़ बेहरे हैं
कदम वापस हों तो शिकस्त मत समझना
पीछे लौटकर ही आगे बढ़ती लेहरे हैं
शख़्सियत में नमक रक्खो बचाव जितना
समंदर से क्या कभी निकली नेहरे हैं
सरलता सफल होने के बाद छजती है
नाकामीके कोई मुकाम न देहरें हैं
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