मिली बोहत बधाइयाँ, शुभकामनायें पायीं
नए पुराने दोस्तों को हमारी याद आयीं
डायटके फरमान दरकिनार कर दिए गए
चॉकलेट और केक खूब खायी खिलायीं
वाट्सएप्प पर एक संदेसा उसका भी आया
पहनके वही कुरता जो हमने था दिलवाया
मेरी एक बिसराई कविता फिरसे जब गाईं
बरसों से बुझी मनमें एक ज्योत जलायीं
पूछा पत्नीसे रोज़ जन्मदिवस मनाएं क्या
युहीं यारों से अपनी तारीफें करवाएं क्या
मन की बातों को समझी और वो मुस्कायीं
पास बैठ नयी कविताकी भूमिका बतायीं
Comments
Post a Comment