क्यों ये ज़िद, कैसी ये आफत है,
बात मज़हब की, हो रही सियासत है
नमाज़ क्यों मंदिर में, क्यों मस्जिदमे पूजा
अपनी अपनी जगह भक्ति औ इबादत है
बुराई को बुरा केहनेसे मत डरो
इन हलातोंकी ज़िम्मेदार यही आदत है
भाई भाई के नारोंने बेडा गर्क किया
चीन हो या पाक दोनों बेगैरत है
मुसलमाँको जो आज़ादी और सुकूँ की तालिब
हिन्दुकी भी तो अरदास वही इज़्ज़त है
आग को है आवश्यक डर पानी का
गुनाहों को रोकती अंजामकी देहशत है
लंका हो मगध या हस्तिनापुर
नाश हों पापी तभी हिफाज़त है
पडोस के गुंडे से दब जाना
दुःख को न्योता देती ये हरकत है
तलवार का काम दीयों से नहीं होगा
बार बार ज़ुल्म सहना भी ज़िल्लत है
हाथों से ना सही दिल से तो लड़ो
आत्मरक्षा की कानून में इज़ाज़त है
जिसके खिलाफ हो उस जैसा मत बनो
अपनी पहचान बनी रहे यही हसरत है
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