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Showing posts from 2023

नज़ारा होते ही शबाबका उछल जाता हूँ

नज़ारा होते ही शबाबका उछल जाता हूँ  दिल हूँ मैं, आदतन फिसल जाता हूँ  छोटे-बड़े, आड़े-तिरछे, जो मिले खेल लूँ  हूँ बच्चे सा, गुब्बारोंसे बेहल जाता हूँ  मंज़िलोंसे अधिक प्रेम सफर से है मुझको  कहाँ को चलता हूँ, कहाँ निकल जाता हूँ 

चीर कर यूँ दिल अपना दिखाते हैं

चीर कर यूँ दिल अपना दिखाते हैं  आइये इक नया नगमा सुनाते हैं  हँस दीजिये भले ही देख ज़ख्म मेरे  ये दुःख किसीके तो काम आते हैं  दाद नहीं दोगे, शायद पढ़ो भी नहीं  हम शेरोंमें जीते हैं रोज़ मरे जाते हैं 

तेरे ग़म, तेरी खुशियां, सभी मुश्किलें बांटूंगा

तेरे ग़म, तेरी खुशियां, सभी मुश्किलें बांटूंगा  पाँव दबा दूंगा लेकिन तेरे तलवे नहीं चाटूँगा  इश्क़, मोहब्बत, दीवानगी, कम नहीं फिर भी  बिछड़ जाने पर कभी कलाइयां नहीं काटूंगा  तू है ज़रूरी सब से मगर बस तू ज़िन्दगी नहीं  कभी कभी कुछ वक़्त मैं तन्हाईमें भी काटूंगा

मेरी ही बदौलत हैं

सब गीत, किस्से, कहानियाँ, मेरी ही बदौलत हैं  तुम्हारी जितनी हैं परेशानियाँ मेरी ही बदौलत हैं कई सैलाब, कई असबाब छुपाये बैठा हूँ खुदमे  कहीं वादियां, कहीं वीरानियाँ मेरी ही बदौलत हैं गुलाबी गालोंकी लाली, नशीली आँखका काजल ये हसीं जितनी भी हैं रानाइयाँ मेरी ही बदौलत हैं  कांपते होंठ, बिखरती ज़ुल्फ़, ये खोये हुए से नैन  मोहब्बतकी सभी निशानियाँ मेरी ही बदौलत हैं  छेड़-छाड़, अठखेलियां, फिर रूठना-मनाना कभी  करते हो जो तुम ये शैतानियाँ, मेरी ही बदौलत हैं  ये जो लिख लेते हो इश्क़ कभी गा लेते हो प्यार  इसे हुनर कहो या हैरानियाँ, मेरी ही बदौलत हैँ 

गर है मोहब्बत तुझे तो यूँ जताया कर

गर है मोहब्बत तुझे तो यूँ जताया कर  नाराज़ भी हो तो जाके लिपट जाया कर यूँ तन्हाईमें अब नींद अच्छी नहीं आती  ख्वाबोंमें आकर मेरे रोज़ जगाया कर  तेरे हर मिज़ाज़ पर हक़ बनाना चाहता हूँ अपना रंजो-ग़म बस मुझे सुनाया कर  लापरवाह, बदगुमान, क्रोधी, ज़िद्दी वगैरा  अपने दीवानेके सब ऐब भूल जाया कर  हर लम्स तेरी चाहतकी गवाही है मुझको  शबो-रोज़ मुझे ये याद दिलाया कर 

मुस्कुराकर जब वो मेरा नाम लेते हैं

मुस्कुराकर जब वो मेरा नाम लेते हैं  दोनों हाथोंसे दिल को थाम लेते हैं  फिसलते नहीं अब नखरों पर उनके यूँ तजुर्बे और संयमसे काम लेते हैं  चलो खुद ही चलाते हैं खंजर खुदपर  ज़रा उनके हाथोंको आराम देते हैं  अन्जान हाथोंमें उंगलियां पिरोयीं जिसने  बेवफाई का हमको इल्जाम देते हैं  करते हैं यकीन तो खाते ही हैं धोका  एहतियात हालाँकि तमाम लेते हैं  

राम मुबारक हो तुमको

राम मुबारक हो तुमको  आख़िरकार अपना धाम मिला  कितनी सदियाँ भटके हो  अब जा करके आराम मिला  तुम और तुम्हारे होने पर  कई प्रश्न, अनेको तर्क चले  हर एक अदालतके आगे  सच जैसे तुम निर्भीक मिले  जुठलानेकी खातिर तुमको  भरसक झूठों ने यत्न किये  धर्म, हया, माँ-बाप सभी  बाज़ारोंमें ही त्याग दीये  वर्षों से जलती क्रांतिको  एक सुखद अंजाम मिला  राम मुबारक हो तुमको  आख़िरकार अपना धाम मिला कितने ताने कितने लांछन  तुमपर अबतक हैं उछल रहे  हर दिन एक नयी परीक्षाकी  अग्निसे जलकर निकल रहे  अपने मूल्योंके मानक पर  कलियुगमें तुमको तौल रहे  जाने-अनजाने धोबीकी  वही भाषा हम भी बोल रहे  इन कल्पित दोषोंको सरे  बाजार तुम्हारे जता रहे  तुम तो कहीं और के हो  भारतको ऐसा बता रहे  श्रद्धा को विजय, परिश्रमको  निश्चित ही ये परिणाम मिला  राम मुबारक हो तुमको  आख़िरकार अपना धाम मिला पानी पर पत्थर क्यों तैरे  संशय इसपर भी किये गये 

माजरा क्या है

उसने बड़े दिनों में किया है याद, माजरा क्या है  कोई शिकायत है या फ़रियाद, माजरा क्या है  टूटकर बिखर गया था, अब समेट चूका हूँ खुदको  दिख रहे फिर पत्थर उसके हाथ, माजरा क्या है  दिल भी तोड़ा मेरा, इलज़ाम भी लगाया मुझपर  गज़ब है की आज फिर वही बात, माजरा क्या है  आंसूंओंसे भीगे रुमाल लिए लौटा करता था मैं  वही इश्क़ औ मैं भी, वही हालात, माजरा क्या है  पहले चूमि हथेली फिर आंसू गिराए, भींच दिया   मुट्ठीमें समा जाएँ इतने जज़्बात, माजरा क्या है 

इस कहानी का कोई अंजाम उनसे पूछना

इस कहानी का कोई अंजाम उनसे पूछना  ना पूछना मेरी खबर ना नाम उनसे पूछना  जो चुप रहें वो भेद मनका जान ही तो जाओगे  फिर हैं कैसे दिन क्यों कैसी शाम उनसे पूछना काले रंग की डायरीमें अब तलक छुपाये हैं  किस दीवानेने लिक्खे पयाम उनसे पूछना  शेर जिसके गुनगुनाते रेहते हो दिनरात तुम  दोगे उस कविको क्या इनाम उनसे पूछना  वक़्त सारा खो दिया, इक इश्क़की तलाशमे  कैसा नाकारा हूँ क्यों बदनाम उनसे पूछना  आया नहीं बाज़ारमें हमें बेचना अपना हुनर  राज क्यूँकर रेह गया गुमनाम उनसे पूछना 

मिलते ही निगाहें उसके तेवर पहचानते हैं

मिलते ही निगाहें उसके तेवर पहचानते हैं  समंदरके मुसाफिर हैं हम, भंवर जानते हैं  हमसे मिलो जब भी खुदको संभाले रखना इश्क़ करते हैं औ निभानेका हुनर जानते हैं  एक मुस्कानने बता दी ग़मकी सारी कहानी  बोहत तजुर्बे हैं, टूटे दिलका असर जानते हैं  होली-दीवाली मिलने आ जाते हैं दोस्त सभी  याद बोहत आता है शायद मुझे घर जानते हैं  तूफ़ानोंका खौफ तो कबसे जाता रहा राज भीगे पंख लिए उडनेका हम जोहर जानते हैं  

ईशारों ही ईशारोंमें सब बात होती

ईशारों ही ईशारोंमें सब बात होती  सफरमें जब उससे मुलाकात होती  अजनबी ज्यों वाकिफ़ हैं, काश वैसे  उसे भी कुछ हमारी मालूमात होती  दुआ क़ुबूल हो गर तो तेरे बिना मेरा   ना ही कोई दिन होता, ना रात होती  ज़ुल्फ़ बिखेरे हुये मुझसे मिलने आते  इससे बढ़कर और क्या सौगात होती  छींटे उड़ाने वाले, नज़रें मिलाएं कभी  मेरे दुश्मनकी इतनी तो औकात होती  ख़ामोशी से ऊब गया हूँ, ये सोचता हूँ  बेहल जाता मन जो कोई वारदात होती  अच्छा होता की बैर ही पाल लेते दोस्त इस झूठे तकल्लुफ़से तो निजात होती  किसे जाना है स्वर्ग, मोक्ष किसे चाहिए  खुश होते जो तेरे पेहलुमें वफ़ात होती  इश्क़ लिखते, प्यार पढ़ते, गाते चाहत  कुछ ना होता मगर इतनी हयात होती 

ऐसा क्या है जो ये हो नहीं सकता

ऐसा क्या है जो ये हो नहीं सकता  हूँ इंसान मैं भी, क्यों रो नहीं सकता  तेरा ग़म है तुझसे ज़्यादा अज़ीज़  तुझे खो दिया, इसे खो नहीं सकता  कुशल तैराक हूँ, येही सोच कूदे थे ना  क्या लगा, इश्क़, मुझे डुबो नहीं सकता आँखोंके दरियामें उसके सयाने हुए गुम  मैं तो फिर दीवाना, क्यूँ खो नहीं सकता  बेवफा केह दिया ज़रासी नाराजगीमें मुझे  रूह पे लगाया है दाग, ये धो नहीं सकता  जवाब उनके भी हैं, सवाल जो पूछे ही नहीं  दिल पर इतना बोझ, अब ढो नहीं सकता  मेरा हो ना हो, खुश वो सदा रहे, दुआ मेरी  यदि भाव ये ना हों तो वो प्रेम हो नहीं सकता

खिडक़ीवाली लड़की

शेहर दिल्लीमें है इक वो गली  जिस गलीमें उसका घर होगा  जिस घरकी खिडकीके आगे  ज़ुल्फ़ें फैलाये वो बैठती होगी  वहीँ संवारती होगी केश अपने  हाथोंसे बारबार संभालती होगी  दो नैन, बड़े बड़े, जादूसे भरे, उनसे  जाने किसका रस्ता निहारती होगी  मुझे खोजनी है वो गली, वो खिड़की  उस रास्ते पर बार बार चलना है  देखना है झरनोंके जैसे बिखरे बालों को  पतली उंगलियोंको उन्हें संवारते  दाहिने कंधे पर कभी गर्दन के पीछे फैले  या कभी यूँ ही उलझे, खुद उसकी तरह  देखने उन आँखों में एक बार अपना चेहरा  या ऐसे ही उन्हें आसमान ताकते निहारते  मुझे देखना है उसे इक बार, बार बार  हो सके तो सुनना है उसे गुनगुनाते हुए  लिखना है उसे किसी कवितामें या  कोई चित्र बना लेना है उसका, जिसे  देख सकूँ बिना रुके, छू सकूँ उंगलियोंसे  की उसके गेशोंको खुशबु आये मुझतक  ये मेरे ख्वाब हैं, मेरे ख्वाब कविता बनकर  खोज रहे हैं उस खिडक़ीवाली लड़कीको 

अंदाज़ देखे बोहत मगर

अंदाज़ देखे बोहत मगर कोई उनसा नहीं था  कितना दिलपर है असर मुझे अंदेसा नहीं था  कुछ तो रही होगी अलग बात फागुनमें अबकी  रंग जो खिला है गालों पर पेहले ऐसा नहीं था  वो जब भी ख़यालोंमे आया, गीत बनकर आया  गुनगुनाया उसे सदा मगर कभी लिक्खा नहीं था  चारागर वो कमाल, जाने कैसे कर रहा इलाज  तुम आशिक़ हो या बीमार कभी पूछा नहीं था  थक गया हूँ सफरमें घूमते, नये नज़ारोंको देखते  किसी पुराने मंज़रक़ा इंतज़ार मुझे ऐसा नहीं था 

होली हो अपनी

रंगोंके उमड़ें जब बादल तो होली हो अपनी  छलकें पिचकारीसे सागर तो होली हो अपनी एक बरस पूरा बीता बस इस क्षणकी प्रतीक्षामें  निकलें वो घरसे जब बाहर तो होली हो अपनी अबीर, गुलाल, सिंदूर सभी रंग उतर ये जाएँगे  रंगे हमें आँखोंका काजल तो होली हो अपनी बरसें चारों मेघ मगर फागुन ये अधूरा रेह जाये  जो भीगे प्रियतमका आँचल तो होली हो अपनी लाली खुलती सुब्हा की, श्यामा रात दीवालीसी  खिलें रंग मखमली गालों पर तो होली हो अपनी छेड़-छाड़ औ खींच-तान, इनका है आनंद अलग  यदि बाहोंमे आये खुद चलकर तो होली हो अपनी वर्ण सभी, सारी रौनक, शोभा सब तुमसे जीवनकी  नित देखो हमें यूँ ही मुस्काकर तो होली हो अपनी 

करता नहीं

बदल जाता है हर रिश्ता वक़्त के साथ  दिल ये सच भी स्वीकार करता नहीं वो जो कहता था साथ जीवनभर रहूँगा  फ्रेंड रिक्वेस्ट भी एक्सेप्ट करता नहीं  सचमुच नाराज़गी हो तब भी मना लेता  झूठी कोशिश भी अब वो करता नहीं  आँख खुलती रोज़ गुड-मॉर्निंगसे जिसकी  मैसेजके रिप्लाई भी अब करता नहीं 

दिन निकल आया

दिन निकल आया, चलो, नये दुःख की खोजमें  नया लिखने, कोई आंसू कवितामें पिरोया जाए  सभी पुराने दर्द अब तो रास आ गये हैं मुझको  फिर मिलनका वादा हो, फिर दिल ये तोडा जाए 

बंजारा

बंजारोंकी कहाँ किस्मत, बिस्तर अपना नसीब होता  ठहर जाते कुछ रोज़ जो पाँव, शायद तेरे करीब होता  एक सफरसे लौटा कल, फिर एक सफरको निकलना है मिलते कुछ देर तो गोदीमें सर रख, आज ये गरीब सोता  थकन उतरे कभी तो लिख लूँ नयी ग़ज़लें, किस्से सभी  अपने घरमें रेहता गर, तो ये मुसाफिर भी अदीब होता 

खूबसूरत लोग

सामने मेरे मेहफिलमें आज, ये खूबसूरत लोग  क्या अदा है क्या अंदाज़, कितने खूबसूरत लोग  खोल दूँ सब गिरहें, राज़ दिलके उजागर कर दूँ  सुनाएँ गूंजती तालयोंकी आवाज, ये खूबसूरत लोग 

जब भी पूछा घीसकर इन्कार किया

जब भी पूछा घीसकर इन्कार किया  बाहोंमे आयी तो शिद्दतसे मुझे प्यार किया  कितना झूठा हूँ सब पता तो है तुझे  हद है जो मेरे वादे पर ऐतबार किया  ना, नुकर, नहीं, मगर, लब बोले  आँखोंने उसकी खुलके एकरार किया  कसम से, शराबको छुआ तक नहीं मैंने  नशे में हूँ जबसे उनका दीदार किया  जब भी गुज़रा गली से, छुप गयी पर्देमें  शब-ओ-रोज़ जिसने मेरा इंतज़ार किया  फिर उसने रूखसे बालोंको हटाया है  फिर तीर मेरे जिगरके पार किया  काँप गए एक लम्स हुआ जो गलतीसे  उसी ग़लतीको फिर हमने बारबार किया  मेरी सब ज़िद संभाली, सारी बदमाशियां झेली  भला-बुरा जैसा भी हूँ, उसने स्वीकार किया  लबों से छू लिया गालोंको, शरमा गये फिर  चाहतका अपनी कुछ ऐसे इज़हार किया  उसकी खुशीको बँट गये खैरातमे खुद ही  मोहब्बत की है नहीं हमने व्यापार किया  तुम मेरी आखिरी मोहब्बत हो  सरे मेहफिल लो ये स्वीकार किया