बंजारोंकी कहाँ किस्मत, बिस्तर अपना नसीब होता
ठहर जाते कुछ रोज़ जो पाँव, शायद तेरे करीब होता
एक सफरसे लौटा कल, फिर एक सफरको निकलना है मिलते कुछ देर तो गोदीमें सर रख, आज ये गरीब सोता
थकन उतरे कभी तो लिख लूँ नयी ग़ज़लें, किस्से सभी
अपने घरमें रेहता गर, तो ये मुसाफिर भी अदीब होता
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