ईशारों ही ईशारोंमें सब बात होती
सफरमें जब उससे मुलाकात होती
अजनबी ज्यों वाकिफ़ हैं, काश वैसे
उसे भी कुछ हमारी मालूमात होती
दुआ क़ुबूल हो गर तो तेरे बिना मेरा
ना ही कोई दिन होता, ना रात होती
ज़ुल्फ़ बिखेरे हुये मुझसे मिलने आते
इससे बढ़कर और क्या सौगात होती
छींटे उड़ाने वाले, नज़रें मिलाएं कभी
मेरे दुश्मनकी इतनी तो औकात होती
ख़ामोशी से ऊब गया हूँ, ये सोचता हूँ
बेहल जाता मन जो कोई वारदात होती
अच्छा होता की बैर ही पाल लेते दोस्त
इस झूठे तकल्लुफ़से तो निजात होती
किसे जाना है स्वर्ग, मोक्ष किसे चाहिए
खुश होते जो तेरे पेहलुमें वफ़ात होती
इश्क़ लिखते, प्यार पढ़ते, गाते चाहत
कुछ ना होता मगर इतनी हयात होती
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