नज़ारा होते ही शबाबका उछल जाता हूँ
दिल हूँ मैं, आदतन फिसल जाता हूँ
छोटे-बड़े, आड़े-तिरछे, जो मिले खेल लूँ
हूँ बच्चे सा, गुब्बारोंसे बेहल जाता हूँ
मंज़िलोंसे अधिक प्रेम सफर से है मुझको
कहाँ को चलता हूँ, कहाँ निकल जाता हूँ
I am not a poet. But these words came to me out of nowhere. I wrote them, read them and re-read them. Only one word could describe what I had written. Hence, they are my Poems.
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