रंगोंके उमड़ें जब बादल तो होली हो अपनी
छलकें पिचकारीसे सागर तो होली हो अपनी
एक बरस पूरा बीता बस इस क्षणकी प्रतीक्षामें
निकलें वो घरसे जब बाहर तो होली हो अपनी
अबीर, गुलाल, सिंदूर सभी रंग उतर ये जाएँगे
रंगे हमें आँखोंका काजल तो होली हो अपनी
बरसें चारों मेघ मगर फागुन ये अधूरा रेह जाये
जो भीगे प्रियतमका आँचल तो होली हो अपनी
लाली खुलती सुब्हा की, श्यामा रात दीवालीसी
खिलें रंग मखमली गालों पर तो होली हो अपनी
छेड़-छाड़ औ खींच-तान, इनका है आनंद अलग
यदि बाहोंमे आये खुद चलकर तो होली हो अपनी
वर्ण सभी, सारी रौनक, शोभा सब तुमसे जीवनकी
नित देखो हमें यूँ ही मुस्काकर तो होली हो अपनी
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