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राम मुबारक हो तुमको

राम मुबारक हो तुमको 
आख़िरकार अपना धाम मिला 
कितनी सदियाँ भटके हो 
अब जा करके आराम मिला 

तुम और तुम्हारे होने पर 
कई प्रश्न, अनेको तर्क चले 
हर एक अदालतके आगे 
सच जैसे तुम निर्भीक मिले 
जुठलानेकी खातिर तुमको 
भरसक झूठों ने यत्न किये 
धर्म, हया, माँ-बाप सभी 
बाज़ारोंमें ही त्याग दीये 
वर्षों से जलती क्रांतिको 
एक सुखद अंजाम मिला 
राम मुबारक हो तुमको 
आख़िरकार अपना धाम मिला

कितने ताने कितने लांछन 
तुमपर अबतक हैं उछल रहे 
हर दिन एक नयी परीक्षाकी 
अग्निसे जलकर निकल रहे 
अपने मूल्योंके मानक पर 
कलियुगमें तुमको तौल रहे 
जाने-अनजाने धोबीकी 
वही भाषा हम भी बोल रहे 
इन कल्पित दोषोंको सरे 
बाजार तुम्हारे जता रहे 
तुम तो कहीं और के हो 
भारतको ऐसा बता रहे 
श्रद्धा को विजय, परिश्रमको 
निश्चित ही ये परिणाम मिला 
राम मुबारक हो तुमको 
आख़िरकार अपना धाम मिला

पानी पर पत्थर क्यों तैरे 
संशय इसपर भी किये गये 

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कभी ना थे.....

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हो सकता है

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