उसने बड़े दिनों में किया है याद, माजरा क्या है
कोई शिकायत है या फ़रियाद, माजरा क्या है
टूटकर बिखर गया था, अब समेट चूका हूँ खुदको
दिख रहे फिर पत्थर उसके हाथ, माजरा क्या है
दिल भी तोड़ा मेरा, इलज़ाम भी लगाया मुझपर
गज़ब है की आज फिर वही बात, माजरा क्या है
आंसूंओंसे भीगे रुमाल लिए लौटा करता था मैं
वही इश्क़ औ मैं भी, वही हालात, माजरा क्या है
पहले चूमि हथेली फिर आंसू गिराए, भींच दिया
मुट्ठीमें समा जाएँ इतने जज़्बात, माजरा क्या है
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