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Showing posts from June, 2022

आइना

मेरी अपनी तस्वीरको भी पलट करके दिखाता है  झूठ कहा किसीने की आइना सब सच बताता है  मैं जैसा सोचूं मनमें ठीक वैसा ही देख लूँ खुदको  मेरे भरमके मुताबिक़ ही प्रतिबिंब बदल जाता है  उसकी एक मुस्कानने गायब कर दीं शिकन सारी  ज़रा सा मिजाज़ बदलते ही नए रंगमें ढल जाता है  कभी फुर्सत मिलती है तो उसको सँवरते देखता हूँ  ठहरता नहीं है कम्बख्त वहीँ, वक़्त निकल जाता है  दर्पणके सामने ही मेरे पास आ वो भी खड़े हो गये  देखता हूँ की ये मेरा अक्स भी उन पर मर जाता है  

वो केश अब संवारती नहीं

वो केश अब संवारती नहीं  बाँध लेती है जुड़ेमें जोरसे  पेहलेसी घटाएँ पसारती नहीं  वो केश अब संवारती नहीं  समय कम रहता है बोहत  उसके पास सजनेके लीये  वक़्त कभी बचता ही नहीं  किसी हसीन सपनेके लीये  बाहें बालमके गले उतारती नहीं  वो केश अब संवारती नहीं  तैयारी बच्चोंके स्कूल जानेकी  जूते चमकाने, टिफिन बनानेकी   घरके सब काम करनेके बाद  खाना खिलाने, होमवर्क करानेकी  ज़िम्मेदारी तो कोई नकारती नहीं  बस, वो केश अब संवारती नहीं  गीले बालोंसे ओस की बूंदें गिरा  कभी मुझको उठाया करती थी  या बिखरी काली ज़ुल्फ़ों तले  कभी मुझको सुलाया करती थी  सितम ऐसे कोई मुझपर गुजारती नहीं   वो केश अब संवारती नहीं 

छोड़ आया हूँ

लबों तक आ पहुंचा था वो समंदर छोड़ आया हूँ  दीवानगी प्यासकी थी ऐसी मैं सागर छोड़ आया हूँ  एक पेड़ने बरसों बचाये रक्खा था धूपसे मुझको  एक तलाशमे निकला हूँ, वो शजर छोड़ आया हूँ 

मेरी किताबें

मेरे शौख, मेरे ऐब, मेरी लत हैं ये  छुड़ाए नहीं छूटती वो आदत हैं ये  बड़ी जागीर कोई नहीं जुटाई मैंने  संजोई जीवनभर वो दौलत हैं ये  चाहते हो ढूंढना खुदको अगर तुम  पेहली और आखिरी ज़रूरत हैं ये  कई रंगके किरदार जीये मैंने इनमे  कभी हवस हैं कभी इबादत हैं ये  चंद पन्नोंमे संसार छुपाये रेहती हैं  मेरी सबसे अज़ीज़ विरासत हैं ये 

रहे हैं

दास्तान अपनी इन्हीं गीतोंमें गा रहे हैं  लिखे थे तुम्हारे लिए, जगको सुना रहे हैं  ग़ज़लका मोज़ू, शायरी की तम्हीद हो तुम  तुम्हारा है दर्द जो शायरी में लिखे जा रहे हैं ऐसा नहीं की मिलनेको बेकरारी है कम  तुम्हारे लिए ही रंग बालोंमे लगा रहे हैं  शाख़ पर अकेला जिन्हें छोड़ गए परिंदे  घोंसले अब वो मेरे सपनों में आ रहे हैं  किसी दिन तो गुमनामीके अँधेरे छंटेंगे  रोज़ाना नया कलाम लिखे जा रहे हैं  ये जो जब्त किये बैठे हो सारी रौशनी ख़बरदार की मंच पर अब हम आ रहे हैं  सुख़नवर हो तुम, भरम छोड़ दो राज  ये देखो फिर वो बिना पढ़े जा रहे हैं 

है मुझे

शायरी से है प्रेम, कवितासे मोहब्बत है मुझे  कुरेदना दिलके ज़ख्म रोज़, आदत है मुझे  अब कोई यार पेहले सा अज़ीज़ नहीं रहा  अपने लिए बोहत आजकल फुर्सत है मुझे  उसकी हर तस्वीरको बार बार देखता हूँ   ये क्या गज़ब नशा, अजीब लत है मुझे  दौलतें गिरीं पैरों पर, झुक कर उठा ना सके  इसी उसूलपरस्तीसे अब नफरत है मुझे   फिलवक्त अर्ज़ियाँ नामंज़ूर कर रहा लेकिन  सुन सब रहा है मेरा राम, अक़ीदत है मुझे 

तुम्हीं थे

मुंह मोड़ कर जानेवाले देखा मैंने, तुम्हीं थे  देख रहे थे बड़ी देरसे इधर देखा मैंने, तुम्हीं थे  घरकी दीवारमे चुनवा दिए, मुझपर चले जो कल  मुसलसल पत्थर चलानेवाले देखा मैंने, तुम्हीं थे

राम कहानेको

राम कहानेको कर्त्तव्य निभाना पड़ता है  कर्मोंसे खुदको भगवान बनाना पड़ता है  नहीं गूंजते रेहते हैं नाम यूँ ही सदियों तक  वक़्त पड़े तो पत्थर पानीपे तैराना पड़ता है  पर्वत उठा लेनेवाले खुद ही सेवक बन जाएँ  किरदारको ऐसा असरदार बनाना पड़ता है    हर युगमें भीषण संघर्ष उठाना पड़ता है  राम होनेके लिए वनवास जाना पड़ता है  पहाड़ चीर कर नदियां लाते होंगे लोग  प्यारमे सागर पर बाँध बनाना पड़ता है  यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, पर्याप्त नहीं  सीताका हो अपमान तो लंका जलाना पड़ता है  राम हो तो दुखियोंका साथ निभाना पड़ता है  खुद जाकर सुग्रीवको हाथ थमाना पड़ता है  कौन जाने किस समय कौन काम आ जाये  गीद्ध, निशाचर, वानरोंको साथ मिलाना पड़ता है  केवल मुकुट रखनेसे विभीषण राजा नहीं होता  संकल्प पुष्टिको युद्धमे रावण हराना पड़ता है

ना आया

होठों तक पहुंचा मगर प्यास ना बुझा पाया  वो जीवन क्या जो किसीके ना काम आया  आँखें भर आती है खिलखिलाहटें याद करके  वो रिश्ता क्या जो खुलके हंसा ना रुला पाया  उदासी बढ़ गयी और भी, फ़ोन जब लगा नहीं  वो याद ही क्या, रात भर जिसने ना तड़पाया  जाने क्यों केहते केहते रुक गया मुझसे यार  वो दोस्त क्या जो बेझिझक ग़म ना बाँट पाया  उसके नामके हर अक्षर को भुला दिया लेकिन  वो दीवाना चाहकर भी एक नाम ना भुला पाया उसके खत के पुर्जे किये, ख़ाकमें मिला दिया  वो पन्ना नाम उसका था जिसमे ना जला पाया यूँ तो बोहत देरसे नज़रें ताक रही थी उन्हें  वो मुड़े इस तरफ तो निगाहें ना मिला पाया  ये काले बादल फिर आज घेरके बैठे हैं आसमान  वो भी अपनी उम्मीदका दिया फिर ना बुझा पाया  एक ख्वाब खुली आंखोंमे आकर बस गया कभी  वो जागता ही रहा पलभरभी आँख ना लगा पाया 

अपने बड़ों के नाम

चरण छूकर एक प्रणाम कर रहा हूँ अपने बडोंका एहतराम कर रहा हूँ  दीया क्या दिखायेगा सूरजको रौशनी अपनी हस्तीसे बड़ा काम कर रहा हूँ गरुड़के सहारे गौरैया लाँघी हिमालय  खुदके लिए वही इंतेज़ाम कर रहा हूँ जो भी है हुनर, उनकी ही बरकत है ये कृतिभी उन्हींके नाम कर रहा हूँ  उपनिषदोंकी मानिंद पढ़ता रहा उन्हें आज भी वही मैं सकाम कर रहा हूँ 

रात भर

जश्न चलता रहा, जाम घुलते रहे, कहानी बनती रही रात भर  हम भी थे, यार भी थे, बातें भी, यूँ ही चलती रही रात भर  कोई मय के पयालोंमे खुद ही को खोजता रहा ताउम्र  हम खुदको तलाशते रहे शायरीमे रात भर 

यारों

सरमस्त हो गये थे उसने जो छू लिया इक रोज़ नशा वही तलाश, थोड़ा और, मिला लो यारों  सुरूर उसके हुस्नका अब तक हल्का नहीं हुआ  बेकार रखे ये जाम मेरे सामने, हटा लो यारों  नयी कलियोंके खिलनेकी मेहक आई दफ़अतन    फ़ुरसतसे किसी शाम हवेली पर, बुला लो यारों  शोहरत मिली ना दौलत, इश्क़में भी नाकाम रहा  रौशनीके तो काम आये, ये कलाम, जला लो यारों

फिर...

फिर किसी बातपे दिल भर आया है अभी  जैसे भुलासा कोई दर्द उभर आया है अभी  फिर अधूरा छूट गया किस्सा जो पसंद था  ज़ेहनमे क्यों तेरा ख़याल उतर आया है अभी  फिर ज़रा सी बात पर बात बंद हो चली है  नये कपडोंमे नया फोटो नज़र आया है अभी फिर एक अजनबी सफरमें मुस्कुराता मिला  जान पड़ताकी नया इस शहर आया है अभी फिर खूबसूरत उदास ऑंखें इन्तेज़ारमे थीं  झूठे वादे पर किसने ऐतबार दिलाया है अभी