तुम्हें याद करते ज़माने बीत गये
हारे हैं हर बार फिर भी जीत गये
तुझसे ही शुरू, तुझमें ही ख़त्म,
मेरी नज़्म, मेरी गज़लें, मेरे सारे गीत गये
हारे हैं हर बार फिर भी जीत गये
कहीं ज़िक्र हो तुम्हारा या नाम ले कोई
कोई बात छिड़े या मेरा दामन थाम ले कोई
कभी गुज़रें गलियोंसे जहाँ
उँगलियों ने छुआ था हाथों को
कभी गुलाब की पंखुड़ियों से
तस्वीरों का काम ले कोई
आ जायेंगे नज़रोँके आगे, लम्हे जो बीत गये
हारे हैं हर बार फिर भी जीत गये
क्या खत रक्खे हैं अब भी छुपाकरके मेरे
क्या याद है मिसरे अब भी ग़ज़लोंके मेरे
क्या हरा रंग अब भी तुमको उतना ही भाता है
क्या दिल धड़क जाता है अब भी नाम पर मेरे
इन्हीं सवालोंमें फुर्सतके सारे पल बीत गये
हारे हैं हर बार फिर भी जीत गये
कांपते होंठों की थरथराहट भूले नहीं
तेरे कदमों की आहट भूले नहीं
याद हैं बड़ी बड़ी आँखों की हया
चेहरे की मुस्कराहट भूले नहीं
खुशबु ज़ुल्फोंकी भूली नहीं,
मौसम कितने ना जाने बीत गये
हारे हैं हर बार फिर भी जीत गये
मुलाक़ात के वादे कुछ अधूरे रेह गये
मेरे बदमाश इरादे कुछ अधूरे रेह गये
कई खत जो तुमको लिखना बाकी हैं
मतले कई आधे कुछ अधूरे रेह गये
मज़्मून तो लाज़िम हैं अब भी,
सूरतेहाल मगर बीत गये
हारे हैं हर बार फिर भी जीत गये
तुम्हें याद करते ज़माने बीत गये
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