माहौल बदल रहा है, ध्यान हो
देश कैसे चल रहा है, ध्यान हो
फेंक कर जा रहे, जिन्हें गोद लिए बैठे थे
गोत्र तक बता रहे, जो सेक्युलर बने बैठे थे
भेड के लिबासमें घूमते, भेड़ियेकी पेहचान हो
माहौल बदल रहा है, ध्यान हो
दादा के नहीं दादी के धर्म से जुड़ रहे हैं
पारसी, ईसाई हो लिए, अब पंडित बन रहे हैं
रिवायत उनकी गद्दी रहे, देश चाहे कुर्बान हो
माहौल बदल रहा है, ध्यान हो
बादशाहों के बेटे बनकर हमको डरा रहे
यूँ बंटे हुए रेहने के अंजाम दिखा रहे
है ज़रूरी की अपने पराये का अब ज्ञान हो
माहौल बदल रहा है, ध्यान हो
मरी है व्याप्त और मृत्यु का नर्तन भयंकर
है रोग से दुष्कर मनुज के मन का ये डर
उपचार से बढ़कर भी पूर्वावधान हो
माहौल बदल रहा है, ध्यान हो
वयस्क तन हुआ है मन बड़ा चंचल अभी
यादें उमड़ती जब नाम भूले कोई ले कभी
हृदयकी उर्मियों पर विवेकका संधान हो
माहौल बदल रहा है, ध्यान हो
शब्द खुद ही जुड़े और वाक्य बनते गये
मुक्तक एक के बाद एक शक्य बनते गये
कविता की निधि का खूब ही सन्मान हो
माहौल बदल रहा है, ध्यान हो
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