आजकल शाम ज़िन्दगीकी बेवजह, गमगीन हो जातीं हैं
बीतें कल की यादें अक्सर, हमनशीन हो जातीं हैं
अब तक क्या जमा, क्या घाटा रहा, हिसाब बेमानी है
लुटा दी सब दौलत, हाथ ख़ाली, हालत संगीन हो जातीं हैं
एक ग़ज़ल चंद शेर जब लिख लेता हूँ सुकून से
बोझ उतर जाते हैं दिल से, आँखें ख़ुश्किन हो जतिन हैं
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