केह भी दो जो है दिल में तुम्हारे
कब तक दबेंगे ये ज़ज़्बात तुम्हारे
होंठ चुप हैं मगर नज़रें बोल देंगी
कब तक छुपाएँगी राज़ तुम्हारे
उँगलियों की कम्पन कैसे रोकोगी
मेरे छूते ही ज़ाहिर हो जाएँगी
कैसे रोकोगी मुड़ना आहट पर मेरी
जानते हैं हम सभी अंदाज़ तुम्हारे
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