उससे ख़ूबसूरत कोई बात होती नहीं,
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
दिन आता-जाता है, शोरोगुल के साथ
नब्ज़ दोहराती है तुझे हर धड़कन के बाद
मुश्किल है गुज़र यह रात होती नहीं
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
यादों ने बसा रक्खा है घरोंदा सा दिल में
सोचते हैं तुझको तन्हाई में, महफ़िल में
फिर भी अक्सर तू मेरे साथ होती नहीं
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
बैठे हैं आज फिर करने को यह फ़रियाद
क्या आओगे मिलने, मेरे मरने के बाद?
हद है अब के जुदाई, बर्दाश्त यह होती नहीं
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
दिन आता-जाता है, शोरोगुल के साथ
नब्ज़ दोहराती है तुझे हर धड़कन के बाद
मुश्किल है गुज़र यह रात होती नहीं
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
यादों ने बसा रक्खा है घरोंदा सा दिल में
सोचते हैं तुझको तन्हाई में, महफ़िल में
फिर भी अक्सर तू मेरे साथ होती नहीं
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
झलकते हैं नग्मों में फ़सानों में महकते हैं
बसते हैं ख्यालों में ख्वाबों ही में मिलते हैं
इतनी नज़दीकी में भी पास वो होती नहीं
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
क्या आओगे मिलने, मेरे मरने के बाद?
हद है अब के जुदाई, बर्दाश्त यह होती नहीं
कमबख्त मगर रोज़ मुलाक़ात होती नहीं
Kya baat kya baat kya baat. Regards Naeem
ReplyDeleteबोहत बोहत धन्यवाद्
Deleteअतिउत्तम
ReplyDeleteखूब खूब धन्यवाद्
DeleteMaar hi daloge in sabdo se Kavi.. Kambakht Roj mulaakat hoti nahi..
ReplyDeleteखूब खूब धन्यवाद्
DeleteMulakat k liye bulati hay.
ReplyDeleteMagar jane k nahi.
ha ha ha...
DeleteLockdown ke baad :)
Keep writing. Your words brinf in a fresh exuberance ✍👌
ReplyDeleteThanks buddy
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