नज़र लगने के डरसे मुंह अपना छुपाते रहे वो
दिल के अरमान बुझाते कभी जलाते रहे वो
कोई बैठा रहा रात सारी निगाहें छत पर लगाए हुए
परदे के पीछे ही शरारत से मुस्काते रहे वो
नज़र के तीर, अदाओं की बरछियाँ तो तेज थीं
गिराईं हुस्नकी मुझ पर वो बिजलियाँ तो तेज थीं
क़त्ल होने को तैयार ही बैठे हुए थे हम
क्या सितम की हमें हर दफै बचाते रहे वो
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