नयी मंजिलें, नये किनारे नज़र आते हैं
ख्वाब जब हैसियत से बाहर हो जाते हैं
जब कोई रास्ता लौटने का ना छोड़ें
रुकावटें मीलका पत्थर बन जाते हैं
अजनबी तो मिलते रहेंगे सफरमें यूँही
दिल खुला हो तो वे भी दोस्त बन जाते हैं
और क्या सबूत दें हम वफ़ा का अपनी
मज़मून कोई हो ज़िक्र उनका किये जाते हैं
'राज' ये मौका फिर कभी आनेका नहीं
मुस्कुराकर वो देखते हैं, और देखे जाते हैं
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