दिनकी उड़ानें ख़त्म कर
पंखों से लेहरें बनाते हुए
चहचहाते ज्यों लौटते हैं
थके परिंदे दरख्तों पर
वैसे ही हर सफर के अंतमें
तुम तक पहुंच जाता हूँ
मझधार से रास्ता खोज
तटों तक आती नावों सा
तुम्हारी रौशनीसे जगमगाते
ज़िन्दगी के किनारे पा जाता हूँ
एक नज़र बस काफी है
दिल को सुकून देने के लिए
गोद में सिर रक्खे हुए
बालों के साये तले
आँख मूँद लेटे लेटे
खुदको भूल जाता हूँ
और तुम एक गीत बन जाती हो
जो कभी लिखा नहीं
मगर रोज़ गाया है
मेरे दिलने तुम्हारे लिए
वो दिल भी तुम्हारे ही पास है
मोहब्बत का इसके अलावा
कोई अर्थ बता नहीं पाता हूँ
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