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Showing posts from April, 2022

वही दे

शायरोंके दिलमे सुलगती ज्वाला भी वही दे  गुमनाम अन्धेरोंसे उबारे वो उजाला भी वही दे  तेरा वो राम जिसने जन्म दिया, कर्म दिया  दिया है पेट तो हर निवाला भी वही दे  ये नहीं के मयकशीसे किनारा कर लिया  पी लेंगे हँसके ज़हर जो प्याला भी वही दे 

लग गया था

सितम कई और भेजे मेरी तरफ उसने  यादोंमें उन्हें भी संजोने लग गया था  एक छुअन, इक बोसा, ज़ुल्फोंको संवारना  इश्क़ जैसा कुछ कुछ होने लग गया था  क्या ग़ज़ल थी, क्या बात कही थी साहब  चन्द शेर मैं भी पिरोने लग गया था 

उदास लड़के

उदास लड़के कहाँ मिलेंगे? मिलेंगे वो भीड़मे तनहा से  अजनबीयोंमे एक दोस्त खोजते  लाइब्रेरी के बाहरके गार्डन में  किताबोंके पन्ने पलटते हुए  क्लासकी बीच वाली बेंच पर  नोट्स लिखते कभी यूँ ही बैठे  किसी नज़र के मुस्कुरानेका  इंतज़ार करते हुए  जगजीतकी गज़लोंको सुनते  गूगल पर शेरके अर्थ खोजते  कविता पढ़ते, सुनते कुछ अपना  लिखने की कोशिश करते हुए  आगे बढ़कर सबके काम आते हुए  कभी कभी बेवजह मुस्कुराते हुए  उदास आंखोंमे झूठी हंसी लाते हुए  अनजान पोस्टपर कविता बनाते हुए  मिल जायेंगे उदास लड़के  अनदेखा कर देना उन्हें, मुंह ना लगाना  बोहत गहरे हैं, संभलना, डूब ना जाना 

देखते हैं

इब्तेदा ए ग़ज़ल होती है जब एक नज़र देखते हैं  मुक़म्मल हो जाती है उन्हें जब जी भर देखते हैं  वो आये, बैठे, कुछ बात की और चल दिए  मुन्तज़िर नक्शेकदम कभी रहगुज़र देखते हैं  चाँद से पेहले तेरा दीदार माँगा है अबकी  चलो हम भी दुओंका असर देखते हैं  तुमने लगायी जो तस्वीर किसी दीवारकी भी गर  गज़ब लत है की हम उसे भी अक्सर देखते हैं 

तबीयत मेरी

तबीयत मेरी भी अब पेहले सी रही कहाँ  हर वक़्त, हर किसीको मिल जाता नहीं  नीम के पत्तोंका ज़ायका भा गया शायद  बाज़ारू मीठे पकवान जल्द खाता नहीं  शुक्र भगवानका, संभाल लेता है मुश्किलमे  और ये भी के कभी एहसान जताता नहीं  दोस्त वो भी हैं, वक़्त के हिसाबसे मिलते हैं  बात करता तो हूँ पर अब बातमें आता नहीं  कुछ उम्र का लिहाज़, कुछ खौफ ज़मानेका  नयी कलियोंको देख पेहलेसा मुस्कुराता नहीं  नज़र से नज़र का मिलना इत्तेफ़ाक़ ही समझो   यूँ दिल हर किसीसे अब लगाता नहीं  एक दीदारको मीलों पैदल चला करते थे कभी  जबसे शहर छोड़ा है उसने, सैर पर जाता नहीं  सुबह सुबह उनकी तस्वीर देख लिया करता हूँ  नमाज़ छोड़ दी है मैंने, अब सजदे भी जाता नहीं

खुदसे ही बातें

खुदसे ही खूब बातें बना लेते हैं  तन्हाईमे दिल कुछ ऐसे लगा लेते हैं  घंटों उनके नाम को ताकते रहते हैं  शामें यूँ ही इन्तेज़ारमें बीता लेते हैं  एक तस्वीर उनकी पसंद आयी थी पिछले दिनों  बार बार नज़रें उस पर घुमा लेते हैं  और के होकर भी वो दोस्त तो हैं मेरे  समझाते हैं ऐसे और मन को मना लेते हैं  देख उनके हुस्न को बेहक तो जाते हैं मगर  ज़ज़्बातों पर बाँध अपने बना लेते हैं 

तेरे खत

गुलाबकी पंखुड़ियाँ बिखरतीं  जिनसे तेरे इत्रकी खुशबु मेहकतीं  हर्फ़ जो उंगलियोंसे सजाए  पैगाम जो सहेलियोंने पहुंचाए  नस्तालिकमें मेरे नाम के नीचे  आँसूओंके दस्तखत तुम्हारे  छुप छुप के देख लेता हूँ  ग़ज़ल केहनेसे पेहले