शाम को टहलते हुए
किसी नीले कुर्ते वाली को देख
एक बरसों पुराना इतवार याद आ गया
और साथ याद आई नदीके किनारों की
पेड़ की छांवमें, पत्थरों पर बैठे बैठे
खायीं थी वो सैंडविच और पी थीं
तुम्हारे हाथों से बनी आखिरी चाय
आज रूमानी हो जाता हूँ सोचते ही
कैसे तुम्हारी गोदीमें सर रखकर रो दिया था
कई सालोंसे वो गोदी सपनों में नहीं आयी
आज ख्वाबों से बिनती करके देखूंगा
फिर ले चले घने बालों के साये में
आज फिर नींद में रोने का मन है
Comments
Post a Comment