पिछले वर्ष एक पौधा लगाया
सूंदर फूल आएंगे ये सोच
कुछ ईश्वर को भेंट होंगे,
कुछ पत्नी, बच्चों को
नियमित पानी, खाद डालकर सींचा
रोज़ रोज़ बढ़ते देखते उसे
बसन्तमें रंग बदलने लगे
कलियों का निकलना,
फूलों का खिलना, जैसे
सारी उम्मीदें पूरी हो रही हों
अचानक एक तूफ़ान मुड़ा
समंदर से ज़मीन की और
बोहत देर तक पौधा जूझा
डंडियों और रस्सियोंका सहारा दिया
लेकिन
जड़ों से मिटटी के हाथ छूट गए
माली से फिर मंगवाया
उसी नस्ल का नया पौधा
नयी आशाओं से फिर लगाया
फिर सींचूंगा, खाद दूंगा
अगली बसंत के इंतज़ार में
आशा ये भी की अब की
आनेवाले तूफ़ानोंमें
अपने अपनों के हाथ ना छोड़ें
Comments
Post a Comment