नये साल बस यही दुआ चाहता हूँ
दर्द हैं जो बन जाएँ दवा चाहता हूँ
जो किस्से जीये मगर दोहराये नहीं
अब शेरोंमें उनको कहा चाहता हूँ
इक लड़की जो छोड़ चुकी शरारतें
फिरसे करे वो कोई खता चाहता हूँ
दो और दो का जोड़ पांच बनाने को
लबों से उसके होंठ छुआ चाहता हूँ
बात करके तुझसे अच्छा लगा दोस्त
बात यूँही करना रोज़ सखा चाहता हूँ
मेरे कुछ ख्वाब प्रतीक्षामें हैं प्रयासके
मैं उनका ये इंतज़ार मिटा चाहता हूँ
राज ज़ाहिर न हो जायें वक़्तसे पहले
ख्वाहिशों को खुदसे छिपा चाहता हूँ
फिर एक ख़याल घर कर चला मनमे
फिर उसे किताबमे लिखा चाहता हूँ
बस दिखा करे वो हररोज़ सुबहोशाम
आलावा इसके कुछ कहाँ चाहता हूँ
पहला दिन है नये साल का और मैं
राज नया आपको दिया चाहता हूँ
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