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Showing posts from October, 2022

आइना चटक के

आइना चटक के टूट गया  यार मिला, फिर रूठ गया  केहनेको बातें बोहत थीं उनसे  देखनेमें केहना, सब छूट गया  दिल आबाद था यादोंसे जिसकी  आकर जागीर, सारी लूट गया  बड़े घरके बेटोंमें छिड़ा झगड़ा  कांचसा दिल, माँका फूट गया  मुसीबतके वक़्त गायब थे दोस्त  दावोंका उनके, पकड़ा झूट गया 

नग्मोंकी थाती

कुछ कवितायेँ, कुछ शेर, कुछ नग्मोंकी थाती है  दिलसे निकलकर कुछ बातें, गीतोंमें आती हैं  हमने कब मन्ज़िलको सोचकर किया सफर शुरू  चल पड़े जिस भी डगर, तुम तक ले आती है  इंसानियत है की खैरात भी एहतिरामसे दी जाये ज़रूरतें घुटनों पर बड़े बडोंको ले आती है  गुब्बारे मिलते ही खिलखिलाने लगे बच्चे फिर सस्तमे इतनी कीमती नेमत मिल जाती है दीवाली मिलने आये बेटे-बहू, पोते-पोतीके लीये  दुखते घुटने लिए माँ रसोइमे जुट जाती है उसकी गलीसे आज भी गुज़रता हूँ मैं जब  कनखियोंसे देखती है और मुस्कराती है सुबहसे शाम तक खड़े खड़े कमर दुखती तो है  रातको फिर भी साजनके वो पैर दबाती है  बोहत लड़ झगड़कर घरसे निकला था मैं कल  कलसे ही घरकी बोहत याद मुझे आती है बालूशाही खिलानेवालेके वहां स्वागतमे पानी-गुड़  तक़दीर कभी ऐसा भी वक़्त दिखाती है 

दीवालीकी बधाई

दीप जल रहे, नयी रौशनी लो छायी है  बाद एक साल ऋत उत्सवोंकी आयी है  ज़मानेभरकी हर ख़ुशी आ सामने बैठी मेरे  एक हसीन लड़की जब सँवरके मुस्कुरायी है  रंग कुछ बदल रहा फ़िज़ाका चारों ओर है  सुना रहा है गीत ये पटाखोंका जो शोर है  जल चुकी फुलझड़ियां, अनार, चकरी चल चुके  आँगनमे मेरे आके रंग रंगोलियोंमे ढल चुके  घर, गली, नगर, शहर, की हर डगर सजाई है  झपटके, माँजके सारी मैल भी हटाई है  सियाराम लौट आये तबसे हर बरस मनाई है  हमको, तुमको, सबको दीवालीकी बधाई है  गले मिले यारोंके हम मुद्दतोंके बाद हैं  दोहराई फिर सभीने भूली बिसरि याद हैं  पुराने चुटकुले और कुछ पुरानी गालियाँ  बेसुरे गीतों पर फिर जोरकी वो तालियॉँ  फिर पुराने खेल, खींच तान और लड़ाइयाँ  ढेरों हैं ठहाके, कुछ गीले भी और रुस्वाइयाँ  रखके हाथ कन्धोंपे तस्वीरोंका खींचना  भरके बाहोंमे एक दूसरेको भींचना  ये क्या लडकपना, कैसी बचकानी ये हरकतें  दोस्तोंसे मिल नयी शरारतोंमे शिरकतें  बाद कई सालोंके रात ऐसी आयी है  नये साल और दिवाली की मित्रों, बधाई...

आ मेरे यार मेरे ज़ख्म कुरेद दे

भर रहे हैं घाव मेरे वक़्तके इलाज से  टीस भी चली गयी अब तो तेरी याद्से  ग़म की कुछ कमी सी मेरी शायरीमे पड़ गयीं  ये गज़ब की अब निगाह औरोंसे भी लड़ गयीं  सांसें तेज़ होती ना, तेरी गलीके मोड़पर  ना आँख होती नम ये सोच तू गयी क्यों छोड़कर  जुड़ रहे हैं टुकड़े दिलके फिर से आके तोड़ दे  थाम मेरा हाथ और बेरुखीसे छोड़ दे  मेरी एक इल्तेजा मान ले ए जानेजां  लुत्फ़-ए-दर्द दे, ग़मे इश्क़ मुझपर फेर दे  आ मेरे यार मेरे ज़ख्म कुरेद दे