खुली आँखोंसे देखता हूँ सपने
कुछ बीती बातें, कुछ पल अपने
कुछ मुस्कुराहटें खिलखिलाती हुईं
कुछ नज़रें झुकती, शर्माती हुईं
कहीं गर्म साँसें, ठंडी आहें कहीं
रेशमी ज़ुल्फ़ोंको सेहलाती बाहें कहीं
ख़यालोंसे मेरे वो अक्सर नहीं जाती
कुछ रात जब नींद नहीं आती
भर चुके वो ज़ख्म रिसने लगते
टीस उठती, दिल दुखने लगते
फिर चलतीं छूरियाँ, कत्लेआम होता
फिर तमाशा मेरा, तेरे नाम होता
कुछ दर्द पुराने, याद आने लगते
कुछ भूले फ़साने, दोहराने लगते
यादें तेरी मुझको ऐसे हैं तड़पाती
कुछ रात जब नींद नहीं आती
घडी जो मेरे जन्मदिन की भेंट थी
वक़्त दिखाना छोड़ दिया है उसने
तेरे मेरे साथका गवाह था इक दोस्त
मिलना मिलाना छोड़ दिया है उसने
मंदिर, बागीचे, कई मोड़ और रास्ते
अज़नबी हो गए हैं सब मेरे वास्ते
ऐसे सभी घाटोंकी गिनती हो जाती
कुछ रात जब नींद नहीं आती
गीत जो कंठस्थ कर लिए थे तुमने
मुक्तक जो जुबानी तुम्हें याद थे
दुपट्टे से रगड़कर मिटाई थी जब स्याही
मैले हाथोंमें तुम्हारे दूधिया हाथ थे
फीका नहीं पड़ा कविताकी किताबका
चाँदी रंगका कवर तेरे हाथ चढ़ा जो
कभी अकेले में छू लेता हूँ चुपके से
कुछ रात जब नींद नहीं आती
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